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१६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएँ
को जीतकर चक्रवर्ती हुए' तथा श्रीदेवी को चक्रवर्ती की माता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । कर्मों के क्षीण होने पर प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की तथा केवल - ज्ञान प्राप्त कर तीर्थंस्थापन किया । माता ने भी धर्मध्यान करते हुए कर्मों का क्षय किया तथा मृत्यु के बाद चौथे महेन्द्र देवलोक में देव योनि को प्राप्त किया |
महादेवी :
अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ की माता महादेवी हस्तिनापुर के महाराजा सुदर्शन की सुलक्षणा रानी थीं । पूर्वभव में सुसीमा नगरी के राजा धनपति राज्य संचालन करते हुए भी जैन धर्म का हृदय से पालन करते थे । संवर आचार्य के उपदेश से वैराग्य उत्पन्न हुआ । दीक्षा धारण कर कठोर तप करने लगे तथा फलस्वरूप तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया । यही जीव माता महादेवी के कुक्षि में अवतरित हुआ । गर्भकाल के समय माता ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भ पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को भगवान् का जन्म हुआ । गर्भकाल में माता ने आरा चक्र देखा था । अतः बालक का नाम अरनाथ रखा गया । युवावस्था में विवाह हुआ तथा कई वर्षों तक राज्य करने के बाद चक्ररत्न उत्पन्न हुआ तथा चक्रवर्ती पद पर अधिष्ठित हुए। कई वषों तक राज्य करने के बाद संसार की असारता का विचार करते हुए वैराग्य उत्पन्न हुआ तथा दीक्षा ग्रहण की । तीन वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में विचरने के बाद भगवान् को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । भगवान् ने तीर्थ की स्थापना की। माता महादेवी को धर्म का पालन तथा कर्मों का क्षय करने से चौथे महेन्द्र देवलोक में देवयोनि की प्राप्ति हुई ।
प्रभावती" :
उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ की माता तथा मिथिला के महाराजा
१. ( क ) हेमचन्द्राचार्य — त्रिषष्टिशलाकापुरुष - पर्व ६, सर्ग १,
(ख) आ० हस्तीमलजी - जैनधर्म का मौलिक इतिहास - भाग १, पृ० ११८. २. ( क ) हेमचन्द्राचार्य - त्रिषष्टिशलाकापुरुष - पर्व ६, सर्ग १
४.
(ख) आ० हस्तीमलजी - जैनधर्म का मौलिक इतिहास - भाग १, पृ० ५९८ ३. देवी, समवायांग, १५७-८, तीर्थोद्गालिक ४८१, आवश्यक नि० ३९८ ( क ) हेमचन्द्राचार्य — त्रिषष्टिशलाकापुरुष - पर्व ३, सर्ग १ (ख) आ० हस्तीमलजी - जैनधर्म का मौलिक इतिहास - भाग १, पृ० ११८ समवायांग, १५७, तीर्थोद्गालिक ४८२. स्थानांग (अभयदेव) पृ० ४०१, ज्ञाताधर्मकथा, ६५
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