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३४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं लाड़-प्यार से पालन-पोषण किया। आठ वर्ष की आयु में पुत्र को एक योग्य आचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिये भेजा। युवावस्था में थावच्चापुत्र का बत्तीस सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर कन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ।' ___ कुछ समय पश्चात् थावच्चापुत्र अपनी माता को प्रणाम कर विनयपूर्वक बोला, "अम्बे, भगवान् अरिष्टनेमि के अमोघ प्रवचन सुनकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है । मुझे अब संसार के भोगों से विरक्ति हो गई है। मैं जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त होने के लिये प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूँ, ताकि आत्मकल्याण कर मनुष्य जन्म को सफल बना सकूँ।" अपने पुत्र की यह बात सुनकर गाथापत्नी थावच्चा अवाक् रह गई, मानो उस पर वज्र गिरा हो। उसने पुत्र को त्याग मार्ग में आने वाले घोर कष्टों से अवगत कराया। पर पुत्र के अटल निश्चय को देख उसने अद्वितीय अभिनिष्क्रमणोत्सव करने का निश्चय किया। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह अपने कुछ आत्मीयजनों के साथ श्रीकृष्ण के पास बहुमूल्य भेंट लेकर पहुंची और निवेदन किया, "राजराजेश्वर, मेरा इकलौता पुत्र थावच्चाकुमार प्रभु अरिष्टनेमि के पास श्रमण दीक्षा स्वीकार करना चाहता है। मैं बहुत समृद्धि के साथ निष्क्रमणोत्सव मनाना चाहती हूँ। अतः आप कृपा कर छत्र, चवर और मुकूट प्रदान कोजिये।"
थावच्चा की इस याचना पर कृष्ण ने सांत्वना देते हुए कहा, "देवानुप्रिये, तुम्हें इसकी किंचित् मात्र भी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं स्वयं इस उत्सव की जिम्मेदारी उठाऊँगा।" अलौकिक ठाट-बाट से निष्क्रमणोत्सव की शोभा यात्रा निकली और समवसरण में जाकर थावच्चापुत्र ने विधिवत् प्रव्रज्या ग्रहण की।
जैन ग्रन्थों में राम अपरनाम पद्म बलदेव, लक्ष्मण वासुदेव तथा रावण प्रति वासुदेव के नाम से उल्लिखित किये गये हैं । अतः उस समय की विशेष महिलाओं का वर्णन यहाँ दिया जाता है। सीतार __ भारतीय संस्कृति में महासती सीता एक उच्चतम आदर्श की प्रतीक मानी जाती हैं। राजा जनक एवं रानी विदेहा की पुत्री एवं राम (पद्म,
१. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-प्रथम भाग,पृ०२३१-२३५ २. प्रश्नव्याकरण प्र०१६, प्रश्नव्याकरणवृत्ति पृ० ८६, आवश्यकचूणि पृ० १८७,
निशीथचूणि, पृ०१०४
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