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प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ४१ पति के आश्वासन भरे शब्द सुनकर बोली, "हे नाथ, मेरे पुत्र के लिये राज्य प्रदान कीजिए।" इस पर राजा ने अपने जेष्ठ पुत्र राम को बुलाकर कहा, "हे वत्स, कला की पारगामिनी चतुर कैकेयी ने युद्ध में अति चातुर्य से सारथि का काम किया था-उससे प्रसन्न होकर मैंने दो वर दिये थे। वही आज मांग रही है। यदि आज मैं उन दिये हुए वरों की पूर्ति नहीं करता है तो संसार के आलम्बन से उन्मुक्त होकर भरत दीक्षा ले लेगा और तुम्हारी विमाता कैकेयो पुत्र शोक से प्राण त्याग देगी।" सारी स्थिति से अवगत होने पर राम ने सहर्ष भाई भरत के लिये राज्य सिंहासन त्याग दिया और स्वयं वन में चले गये ।
कैकेयी के पुत्र स्नेह के कारण भरत ने राज्य सिंहासन प्राप्त किया। परन्तु पति दशरथ के प्रव्रज्या ग्रहण करने तथा राम-लक्ष्मण के वन में जाने से कौशल्या (अपराजिता) व सुमित्रा का दुःख देख कैकेयी का हृदय दुःखी हो गया और उसने भरत से कहा, "हे पुत्र, तुमने श्रेष्ठ राज्य सिंहासन प्राप्त किया है परन्तु वह राम और लक्ष्मण के बिना शोभा नहीं देता। सुखों में पले दोनों कुमार तथा सुकूमारी सीता वनों में कहाँ 'भटकते होंगे? उन दोनों की माताएँ निरन्तर विलाप करती हुई दुःखी हैं अतः तुम शीघ्र उन लोगों को पुनः ले आओ, मैं भी तुम्हारे पीछे आती है"।' मां की आज्ञा से भरत राम-लक्ष्मण के पास गये। भरत तथा कैकेयी दोनों ने राम को वापस अयोध्या चलने का बहुत आग्रह किया पर राम नहीं लौटे।
१. उद. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण, भाग २, पर्व ३२, पृ० ९३
जैन ग्रन्थों में कैकेयी के व्यक्तित्व का अत्यन्त सम्माननीय चित्रण किया गया है । जबकि जैनेतर ग्रन्थों में कैकेयी का चरित्र-चित्रण निन्दनीय है । कैकेयी में एक आदर्शवादी ही नहीं वरन् एक वस्तुवादी नारी का स्वरूप पाते हैं । रामायण में कैकेयी का चरित्र अप्रिय रूप से मानसकार ने चित्रित किया है। जबकि जैन साहित्य में कैकेयी एक उदारवादी धर्मचारिणी तथा विदुषी के रूप में चित्रित हुई है।
कैकेयी के हृदय में ममत्व का सागर विद्यमान था जब कि रामचरितमानस में राम के प्रति उसकी विद्वेष भावना को चरितार्थ किया गया है। जब हम कैकेयी के चरित्र का तुलनात्मक दृष्टि से विश्लेषण करते हैं तो यह प्रतीत होता है कि वह जैन साहित्य और इतिहास की सुलक्षणा नारी है । वह अपने पुत्र भरत को राम से भेंट करने के लिये अनेक बार आग्रह करती
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