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५४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं का निम्न स्थान । इन सब कारणों के साथ एक महत्त्वपूर्ण कारण यह भी था कि उस समय के प्रचलित अन्य धर्म संप्रदायों में ऐसा कोई धार्मिक संगठन नहीं था, जिसमें सुरक्षित रहकर महिलाएं आत्म उन्नति कर सकती थीं। अतः इन्हीं सब राजनैतिक तथा सामाजिक वातावरण के कारण महावीर के संघ में साध्वियाँ तथा श्राविकाओं की संख्या पुरुष वर्ग से दुगुनी थी। ___ तीर्थंकर महावीर ने उस समय की इन सब विषम परिस्थितियों का गहन अध्ययन करते हुए स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति आध्यात्मिक उन्नति के संपूर्ण अधिकार प्रदान किये । जैसे-पूजा, आराधना, बारह व्रतों का पालन, सामायिक आदि ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन इत्यादि । इस आध्यात्मिक उत्कृष्टता के कारण धर्मनिष्ठ श्राविकाओं ने दीक्षित होकर पाँच महाव्रतों का पालन किया तथा कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त किया। स्वयं तीर्थंकर महावीर ने अनेक धर्मनिष्ठ महिलाओं को प्रव्रजित कर संघ में उच्चतम स्थान दिया। उन्होंने चन्दना जैसी तिरस्कृत नारी (दासी) से आहार ग्रहण कर जाति-पाति के निकृष्ट भेद-भाव को मिटा दिया तथा उसे प्रवर्तिनो का पद देकर संघ के वरिष्ठ आचार्य के समान अधिकार प्रदान किया। उनके धार्मिक प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक राजमहिषियों ने संसार-त्याग किया तथा उग्रतम तपस्या कर उसी जन्म में सिद्धत्व को प्राप्त किया। __ इस अध्याय को चार भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम में महावीर के परिवार की महिलाओं, द्वितीय में राजमहिषियों, तृतीय में श्रेष्ठि महिलाओं का तथा चतुथं में दासियों का वर्णन है । ___ तीर्थंकर महावीर जीवन-विषयक इस अध्याय में उन महिलाओं के जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला गया है जिन्होंने इनके धर्म-तत्त्वों को समझकर जीवन में अपनाया। जयन्ति जैसी तत्त्वज्ञानी महिला ने श्रमण धर्म के गूढ़ सिद्धान्तों का विवेचन कर अपनी शंकाओं का समाधान किया। देवानन्दा :
देवानन्दा के पति ऋषभदत्त वैशाली गणराज्य के पश्चिम स्थित
१. कल्पसूत्र २, भगवती, ४४२-४४३, ज्ञाताधर्मकथा-१००, समवायांगवृत्ति
(अभयदेव), पृ० १०६, आचारांग २, १७६, आवश्यकनियुक्ति ४५८, विशेषावश्यकभाष्य १८३९ आदि
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