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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं ; ६१ कि कदाचित् अब मेरा पुत्र संन्यास ग्रहण की अभिलाषा को त्याग देगा।
कुछ वर्षों के अनन्तर यशोदा ने कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। प्रियदर्शना, माता त्रिशला की गोद में खेलने लगी । माता त्रिशला आत्मिक सुख का अनुभव करने लगीं।
महावीर के माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ के श्रमणोपासक थे। बहुत वर्षों तक श्रावक धर्म का परिपालन कर जब अन्तिम समय निकट समझा तो पापों के लिए प्रायश्चित्त किया, चतुर्विध आहार का त्याग कर संथारा ग्रहण किया और मरणान्तिक संलेखना से देह त्याग कर बारहवें स्वर्ग में देव रूप में उत्पन्न हुए।
किसी भी पत्नी का नाम निर्देश न करके वर्द्धमान स्वामी का अनेक कन्याओं के साथ पाणिग्रहण बतलाया गया है । यशोदा :
वर्द्धमान महावीर की जीवन सहचरी यशोदा, वसंतपुर के महासामन्त समरवीर राजा की पुत्री थी । अत्यन्त सुन्दर व गुणवान् पुत्रवधू को पाकर माता त्रिशला अति प्रसन्न थीं। मानव श्रेष्ठ पति वर्द्धमान की सहधर्मिणी होने से यशोदा अपने जीवन को धन्य मानती थी। पति की त्यागमयी मनोकांक्षाओं को समझकर पतिपरायणा यशोदा ने अपनी मनोवृत्तियों को उनके अनुरूप मोड़ दिया था। कालान्तर में सफल दाम्पत्य जीवन के फलस्वरूप उन्हें एक कन्या की माता बनने का गौरव प्राप्त हआ, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया।
विवाहोपरान्त भी कुमार वर्द्धमान का मन सांसारिकता में लिप्त न हो पाया और वे अपनी सहधर्मिणी यशोदा को संसार की असारता के बारे में समझाने लगे । वे राज वैभव से दूर रहते, धरती पर सोते तथा सादा भोजन करते । यशोदा भी पति के विराग भाव को समझते हुए १. आवश्यकचूणि, आचार्य जिनदास गणि, भाग १, पृ० २४९ २. चउप्पन्नमहापुरिसचरिय पृ० २७२ ३. आचारांग, २, १७७, कल्पसूत्र १०९, आवश्यकभाष्य ७९-८०, आवश्यक
चूणि, प्र०, पृ० २४५, ४१६ उत्तराध्ययनवृत्ति पृ० १०१ विशेषावश्यक
भाष्य, १८७४-५ ४. हरिवंशपुराण-दिगम्बर परम्परा महावीर को अविवाहित मानती है।
कल्पसूत्र-कलिंग नरेश जितशत्रु की पुत्री थी यह उल्लेख भी आता है। ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुष पर्व १०, सर्ग २, पृ० २४
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