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प्रागैतिहासिक काल को जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : १३ जयादेवी :
जयादेवी की बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य की माता तथा प्रसिद्ध चम्पानगरी के राजा वसुपूज्य की धर्मपरायणा रानी थीं। पूर्व भव के पद्मोत्तर राजा का जीव तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन कर प्राणांत स्वर्ग से निकल कर जयादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप में अवतरित हुआ। उन्होंने शुभ मंगलकारो चौदह स्वप्न देखे । तदुपरान्त उचित आहार-विहार से गर्भकाल पूर्ण किया और शुभ मुहूर्त पर सुखपूर्वक पुत्र-रत्न को जन्म दिया। महाराजा वसुपूज्य का पुत्र होने के कारण बालक का नाम वासुपूज्य रखा गया। भोग कर्म का बंध नहीं होने से माता-पिता के कहने पर भी कुमार वासुपूज्य ने विवाह नहीं किया। अतः दीक्षित हो केवल-ज्ञान प्राप्त कर तीर्थ की स्थापना की। माता जयादेवी धर्म की आराधना करती हई कर्मों का क्षय करके तृतीय सनत्कुमार देवलोक में गई । श्यामा :
श्यामा तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ की माता थी। महापुरी नगरी के धर्मप्रेमी राजा पद्मसेन ने राज्य करने के बाद दीक्षा ग्रहण की और साधना तथा तप द्वारा तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया। यही जीव देवलोक में आयुष्य पूर्ण कर कृतवर्मा राजा की सुलक्षणा पत्नी श्यामा को कुक्षि में अवतरित हुआ । रानी श्यामा ने चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर पुत्र का जन्म हुआ। यौवन प्राप्त होने पर अनेक राजकुमारियों से विवाह हुआ। कई वर्षों तक राज्य करने के पश्चात दीक्षा ग्रहण की। अन्त में कर्मों का क्षय कर कैवल्य-प्राप्त किया। माता भी धर्मध्यान पूर्वक जीवन व्यतीत कर मरणोपरान्त तृतीय सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न हुई।
१. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४७५ २. आ० हेमचन्द्राचार्य-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-पर्व ४, सर्ग २
-चउपन्नमहापुरिसचरियं में विवाह तथा कुछ काल राज्य पालन का उल्लेख है।
-आ० हस्तीमलजी--जैन धर्म का मौलिक इतिहास-१० १०० ३. समवायांग, १५७ तीर्थोद्गालिक ४७६ ४. (क) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-पर्व ५, सर्ग ३, पृ० ४८
(ख) आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास-पृ० १०२
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