________________
( ४ )
तीन हो देवता हैं ये नैरुक्तोंका मत है। उनके मत में अभि पृथिवी स्थानीय देवता हैं, वायु अथवा इन्द्र अन्तरिक्ष स्थानीय हैं श्रीर सूर्य. शुलोक के देवता हैं। उनको अनेक प्रकारको विभूतियां होने से उनके ही अनेक नाम हैं। तथा कर्मादिके भेदसे भो उनके अनेक नाम है। जिस प्रकार एक ही व्यक्तिके होता अध्ययु आदि नाम होते हैं। ऋ० १०/२७/२३ में लिखा है कि जब देवोंकी गिनती हुई, तब सब देवों ३ देवता मुख्य ठहरे - वायु सूर्य, पर्जन्य, यहाँको मुख्य देवता नहीं माना गया । श्रपितु अनि स्थान में पर्जन्यको मुख्य माना है ।
याज्ञिक मत
परन्तु निरुताचार्यों से भिन्न याक्षिकों का मत है कि मन्त्रों में जितने देवताओंके नाम आते हैं उतने ही पृथक पृथक देवता है । क्योंकि स्तुतिये अलग अलग हैं उसी प्रकार देवताओंके नाम भी पृथक पृथक हैं। नैरुक्तों का यह कथन भी ठीक नहीं कि कर्मक भेदसे नामका भेद है, क्योंकि अनेक मनुष्य भी अपने अपने कमको बाँट कर करते हैं। यदि वे गौणरूपसे एकता स्वीकार करें तो हमें कुछ भी आपत्ति नहीं है। क्योंकि स्थानकी एकसा और भोगोपभोग आदिकी एकता से वे उनको एक कह सकते हैं, जैसे कि कहा जाता है कि भारत ऐसा मानता है, अथवा भारत यह चाहता है यहाँ एकल भी हैं तथा अनेकत्व भी क्योंकि भारत से अभिप्राय उसकी जनता से है ।
* वास्काचार्य दोनों का समन्वय करते हैं ।
M