Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ वंदनाधिकार शोभित होती हैं / मुनि तो ध्यान में डूबे सौम्य दृष्टि को धारण किये हैं तथा नगर के राजा आदि उनकी वंदना करने आते हैं। ये मुनि कहां विराजमान रहते हैं ? या तो श्मशान भूमि में या निर्जन पुराने वन में अथवा पर्वत आदि की गुफा कंदरा अथवा पर्वत के शिखर पर या नदी के किनारे अथवा उजाड भयानक अटवी में या एकांत वृक्ष के नीचे अथवा बस्ती में अथवा नगर के बाहर चैत्यालय में इत्यादि रमणीक जो मन को (अपने स्वरूप में ) लगाने में कारण हो तथा उदासीनता के लिये कारण हो, ऐसे स्थान में स्थित होते हैं / जैसे कोई अपनी निधि को छुपाता फिरे तथा एकांत स्थान में रहा चाहे वैसे ही महामुनि अपनी ज्ञान ध्यान रूपी निधि को छुपाते फिरते हैं एवं एकान्त में ही उसका अनुभव करना चाहते हैं। ऐसा विचार करते हैं कि मेरी ज्ञान ध्यान निधि कहीं चली न जावे तथा मेरे ज्ञान के उपभोग में अन्तर न पड जावे, इसलिये महामुनि दुर्गम स्थानों में बसते हैं / जहां मनुष्य का संचार नहीं होता वहां बसते हैं / मुनिराज को पर्वत, गुफा, नदी, मसान, वन आदि ऐसे लगते हैं मानों ध्यान-ध्यान ही पुकार रहे हों। ___ क्या कह कर पुकारते हैं ? कहते हैं - आओ-आओ, यहां ध्यान करो. ध्यान करो, निजानन्द स्वरूप में विलास करो / आपका उपयोग स्वरूप में बहुत लगेगा, अत: और विचार मत करो - ऐसा कहते हैं / ___ तथा शुद्धोपयोगी मुनि जहां बहुत हवा चलती हो, बहुत धूप हो, बहुत मनुष्यों का संचार हो वहां जबरदस्ती (बल पूर्वक) नहीं बसते हैं। क्यों नहीं बसते हैं ? मुनिराजों का अभिप्राय एक ज्ञान अध्ययन का ही होता है, जहां ज्ञान अध्ययन बहुत बड़े (होना संभव हो वहीं) पर बसते हैं / कोई ऐसा जाने कि मुनि सर्व प्रकार ऐसे दुर्गम स्थानों पर ही बसते हैं, सदैव चाह कर परिषह सहते हैं तथा इतना दुर्धर तपश्चरण करते हैं, सदैव ध्यान में ही रहते हैं, परन्तु ऐसा तो है नहीं / कारण कि मुनिराजों को बाह्य