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आचारांगादि बार अंगो, तेने अंगप्रतिष्ठित कहीए अने अंगबाह्य एटले बार अंगोथी जुईं. ते अंगबाह्य बे प्रकारनुं छे: (१) आवश्यक अने (२) आवश्यकथी भिन्न आवश्यकना छ प्रकार छे: (१) सामायिक, (२) चउविसथ्यो, (३) वंदनक,(४) प्रतिक्रमण, (५) काउसग्ग अने (६) पच्चक्खाण. आवश्यकथी व्यतिरिक्त (भिन्न) पण बे प्रकारनुं छे : (१) कालिक अने (२) उत्कालिक प्रथम पोरसी अने छेल्ली पोरसी समये ज वंचाय अर्थात् दिवस ने रात्रिना पहेला अने चोथा पहोरमां जे वंचाय-भणाय ते श्रुतने कालिक अंगबाह्यआवश्यकव्यतिरिक्त जाणवू. काळ (योग्य समय) वर्जीने गमे त्यारे भणाय-वंचाय ते श्रुतने उत्कालिक जाणवू. आ उत्कालिक अनेक प्रकारनुं छे. दा. त. १ दशवैकालिक, २ कप्पियाकप्पिय (कल्प्याकल्प्य), ३ चुल्ल (नानु) कल्पश्रुत, ४ महाकल्पश्रुत, ५ उववाई,६ रायपसेणी,७ जीवाभिगम, ८ पन्नवणा, ९ महापन्नवणा, १० पमायप्पमायं, ११ नंदी,१२ अनुयोगद्वार, १३ देवेंद्रस्तव, १५ तंदुलवैचारिक, १५ चंदावेध्यक, १६ सूर्यपन्नती, १७ पोरिसिमंडल, १८ मंडलप्रवेश, १९ विज्जाचरणविनिश्चय, २० गणिविज्जा, २१ ध्यानविभक्ति, २२ मरणविभत्ती, २३ आत्मविशुद्धि, २४ वीतरागश्रुत, २५ संलेखणाश्रुत, २६ विहारकल्प, २७ चरणविधि, २८ आउरपच्चख्खाण अने २९ *महापच्चख्खाण विगेरे.
१. दशवैकालिक - तेमां पाछले पहोरे अध्ययन करवा योग्य दश अध्ययनो छे. आ सूत्र चोथा पट्टधर श्रीशय्यंभवसूरिए पोताना मनक नामना पुत्र अने पाछळथी दीक्षित थयेल ते बाळमुनिना अध्ययनार्थे सूत्रोना साररूपे रचेल छे. आ सूत्रमा साधुजीवनना नियमो दर्शाववामां आव्या छे. मूळ श्लोक ७००, अध्ययन १०. आ सूत्र ऊपर त्रण टीकाओ छे. श्रीतिलकाचार्यनी ७००० श्लोकप्रमाण, श्रीहरिभद्रसूरिनी ६८१० श्लोकप्रमाण तेमज श्रीमलयगिरिनी ७७०० श्लोकप्रमाण. लघुटीका पण त्रण छे. एक ३७०० श्लोकप्रमाणनी, बीजी सोमसुंदरसूरिकृत ४२०० श्लोकनी अने त्रीजी समयसुंदरगणिकृत २६०० श्लोकनी. चूर्णि ७५०० श्लोकनी अने नियुक्ति ४५० गाथानी छे.
२. कल्पाकल्प-कल्प एटले आचार. तेमां साधुना तथा स्थविरादिकना आचारनुं वर्णन छे.
३-४. चुल्ल (नानुं) कल्पश्रुत अने महा (मोटुं) कल्पश्रुत - तेने विषे स्थविरादिकना आचारनुं वर्णन छे. कल्पश्रुत बे प्रकारनां छे.-१. चुल्लकल्पश्रुत अने २. महाकल्पश्रुत. पहेलामां श्रीमहावीरस्वामीना ज कल्पाचारनुं वर्णन छे ज्यारे बीजामां चोवीश तीर्थंकरोना आचारनुं वर्णन छे.
५. उववाई (औपपातिक) -देवगति, नरकगति अने सिद्धिगतिमां उपजवाना अधिकारनुं वर्णन छे. वानीय नामना गामना ईशान खूणामां द्विपलास नामर्नु चैत्य हतुं. त्यां ते गामनो राजा जितशत्रु अने श्रावक आनंद प्रभु श्रीमहावीरनी देशना सांभळवा आव्या ते प्रसंगने लगतुं वर्णन छे. वानीयने केटलाक वैशाली नगरी कहे छे अने जितशत्रु श्रेणिकनो पुत्र कोणिक होवानुं अनुमान
___ * पाक्षिक सूत्रमा २९ नामने बदले २८ जणावेल छे. तेमां सोळमुं सूर्यप्रज्ञप्ति जणावेल नथी; परंतु ते ज नाम कालिक श्रुतमां जणावेलछे.
श्रीगच्छाचार–पयन्ना-१४