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पयनो पूर्वधररचित छे ते तेमां श्रीगौतमस्वामीना प्रश्न अने भगवंत श्री महावीरस्वामीना उत्तर एम केम घटी शके? आ बाबतनो खुलासो करतां टीकाकार जणावे छे के-आ गच्छाचार पयत्रो सूत्रमाथी उद्धरेल छे अने सूत्रोना वक्ता तीर्थंकर परमात्मा ज होय छे; बीजा नहीं कारण के आ संबंधमां सूत्र प्रचलित ज छे के–“अत्थं भासइ अरहा" अरिहंत परमात्मा ज अर्थनी प्ररुपणा करे, गणधर महाराज तेने सूत्ररुपे गूंथे. आ रीते पण गच्छाचार पयन्नाना कर्ता श्री तीर्थंकर परमात्मा ज कही शकाय. भगवान श्रीमहावीर आपणा आसन्नोपकारी अने चालु चोवीशीना चरम जिनपति छे अने श्रीगौतमस्वामी तेमना मुख्य गणधर छे एटले श्रीगौतमस्वामीना प्रश्न अने भगवंत महावीरस्वामीना प्रत्युत्तर-एवी शैली गच्छाचार पयन्नाना कर्ता पूर्वधर महापुरुषे स्वीकारी तेमांलेश मात्र अनुचित नथी; परंतु खरी रीते तो ते सूत्रमाथी उद्धरेल छे ते वस्तुनी साबितीरूप छे. वळी कर्ता पुरुष जणावे छे के आ गच्छाचारनी रचनामारी मति-कल्पनानुसार नथी करी पण भगवंत श्रीमहावीरे श्रीगौतमस्वामीने जणावेल तेने अनुलक्षीने ज ग्रंथ-रचना करी छे. श्री पनवणा सूत्रना कर्ता आर्य श्यामाचार्ये पण श्रीगौतमस्वामीना प्रश्न अने वीरभगवंतना उत्तर-एवी पद्धति प्रमाणे ज ते सूत्रनी . रचना करी छे. आ ज प्रमाणे श्री गच्छाचार पयन्नाने अंगे पण समजी लेवू. . प्रकीर्णक संबंधी विशेष वृत्तांत__आटला स्पष्ट ने बुद्धिगम्य खुलासा पछी पण प्रतिवादी विशेष समाधान माटे चार प्रश्न पूछतां जणावे छे के (१) प्रकीर्णक शब्दनो अर्थ शं? (२) प्रकीर्णको क्या छ ? (३) एकेक तीर्थंकरना समयमां केटलां प्रकीर्णको थया अने (४) प्रकीर्णको रच्या कोणे? पहेला प्रश्ननो जवाब ए छे के - प्रकीर्णक शब्दनो व्युत्पत्ति अने संज्ञार्थ एम बे प्रकारे अर्थ थाय छे. जे संबंध चालतो होय तेनुं संपूर्ण वर्णन करे तेनुं नाम व्युत्पत्ति. अरिहंत परमात्माए जे श्रुत सिद्धांतनो उपदेश कर्यो तेने स्वीकारीने जे साधुओ रचना करे ते सर्व प्रकीर्णक कहेवाय. एटले के श्रुतमाथी उद्धरीने रचना करे ते प्रकीर्णक अथवा पयन्नो समजवो अथवा श्रुतनो अंगीकार करीने पोतानी विद्वतापूर्वक तेने धर्मदेशनादिकमां ग्रंथ पद्धति प्रमाणे उपदेशे तेने पण प्रकीर्णक कहेवामां आवे छे. बीजा प्रश्ननो उत्तर ए छे के-श्री ऋषभदेव परमात्माना समये ८४,००० श्री अजितनाथादि बावीश तीर्थंकरोना समये संख्याता हजार अने श्री वीरभगवंतना समयमां चौद हजार प्रकीर्णको थया. आ संबंधमां केटलाक आचार्यों एम पण कहे छे के-एकेक तीर्थंकरना समयमां असंख्याता प्रकीर्णको रचाय छे. चोथा प्रश्ननो जवाब ए छे के श्री ऋषभदेवथी प्रारंभीने श्री वीर परमात्मा पर्यंतना तीर्थमा जे जे मुनिवरो सूत्ररचना करवा शक्तिशाळी थया तेओ बधाए पयन्ना रच्या. वळी प्रत्येकबुद्ध थया तेमणे पण प्रकीर्णको रच्या. आ हिसाबे पयन्ना असंख्याता कही शकाय, कारण के केटलाक तीर्थंकरना समयमा असंख्याता साधुओ थया अने तेमनुं शासन पण असंख्याता समय सुधी चाल्यु. आवी ज मतलबनो उल्लेख नंर्दीसूत्रना टीकाकार श्री मलयगिरिजी महाराज जणावतां कहे छे के–“अहवा तं समासओ दुविहं पन्नतम्...इत्यादि” अर्थात् श्रुतज्ञान बे प्रकारनुं छे. (१) अंगमा रहेलुं जेमके
श्रीगच्छाचार–पयन्ना– १३