Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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.द्वात्रिंशि६२९ तथा 'नयतता' व्यायाम विला पार्थोनी याही. आकर्ष
आत्मप्रत्यय जुओ प्रत्यय आकाशानन्त्यसमापत्ति जुओ समापत्ति (बौद्ध) आत्मभावना १२३५ आकाशानन्त्यसंज्ञा जुओ संज्ञा (बौद्ध)
आत्मलेश्या जुओ लेश्या आकाशानन्त्यायतन समाधि जुओ समाधि (बौद्ध) आत्मशुद्धि जुओ शुद्धि आकिञ्चन्यायतनसंज्ञा जुओ संज्ञा (बौद्ध) आत्मशरीरसंवेजनी जुओ कथा-धर्मकथा-संवेजनी कथा आकिञ्चन्यायतन समाधि . जुओ समाधि (बौद्ध) | आत्मदर्शनहेतु
१३९९ आक्रोशसहन १८५३-५४
आत्मसाक्षात्कारयोग्यता १४८३ आक्षेपकज्ञान जुओ ज्ञान (अवशिष्ट) आत्महान
२१२१ आक्षेपणी कथा जुओ कथा-धर्मकथा
आत्मा आख्यानकथा जुओ कथा(ग्रन्थान्तरगत)-संकीर्णकथा (१) बाह्यात्मा(बहिरात्मा) १३५८-१३६२ आख्यायिका कथा जुओ कथा(ग्रन्थान्तरगत)-संकीर्णकथा | (२) अन्तरात्मा १३१६,१३५८-१३६२, १४९९ आगमतत्त्व ८९, ९३, ११८
(३) परमात्मा २५५, ३२४, ३५४, ७२८, आगमवाद १०७२, ११४१
८२४, ८३१, ८४७, ११२४, ११४३, आगमव्यवहार जुओ व्यवहार
११४६, १३३४, १३५५-१३५६, १३५८आगामिकर्म जुओ कर्म (अदृष्ट, भाग्य) १३६०, १३६२, १३६५, १३९०, १६६१ आगमिष्यद्भद्रता (एष्यद्भद्रा प्रकृति) ९४४-९४५ (४) शुद्धात्मा ७३५, ७३७, १३५८-१३५९, आगमिष्यद्भद्रतानिबन्धन ९४५
१४८१, १४९०, १५१३, १६१७, १६५०, आचरणा १४८, १५० ।
१६५५, १७२३, १९३३ आचारसमाधि जुओ समाधि (विनयादि) | आत्मा (द्रव्यादि) आचाराक्षेपणी कथा जुओ कथा-धर्मकथा-आक्षेपणी कथा (१) द्रव्यात्मा ७३६-७३७ आचार्य
१०, ११, २१४, २७२, ३५५, (२) कषायात्मा ७३६-७३७ ३९८, ६३४, ६४२, ६७६, ८३८, ८८१, (३) योगात्मा ७३६-७३७ ९८५, १०१४, ११३५, ११८९, १४३९, (४) उपयोगात्मा ७३६-७३७ १४४६, १४४८-१४४९, १४९०, १४९२, (५) ज्ञानात्मा ७३६-७३७ १५२६, १६५९, १७५७, १८८४, १९०७, (६) दर्शनात्मा ७३६-७३७ १९७७, १९९६
(७) चारित्रात्मा ७३६-७३७ आचार्यव्युत्पत्ति १९७०
(८) वीर्यात्मा ७३६-७३७ आचारविनय जुओ विनय (चतुष्क) | आत्मोत्पत्ति (श्रुतिसिद्ध) ५८४ आजीविकाभिक्षा जुओ भिक्षा
आदर ६३४, ७५४, ८४२, १२८४, १४४१, १४५५, आज्ञागम्य १०७२
__ १५८९-१५९०, १८०२-१८०३ आज्ञाव्यवहार जुओ व्यवहार
| आदिकर्म ८४६, ८४७, १११९, १४४५ आत्मदर्शन १३३१, १३६१, १३९९, आदिधार्मिक ८४६, ८४७, ८५१, ८६०,
१७०४, १७०६, १७१९, १७२३, १७५४ | ८६२, ९११, ९१७-९१८, ९९९ आत्मपरिणतिमत् ज्ञान जुओ ज्ञान (विषयप्रतिभासादि) | आधार्मिक ५३, ५४-५५, ५७, ४२५, ५२३,१८४७
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