Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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દ્વાત્રિંશિકાપ્રકરણ તથા ‘નયલતા’ વ્યાખ્યામાં વર્ણવેલા પદાર્થોની યાદી -
जुओ पूजा
८७१
जुओ भिक्षु (नामादि)
जुओ म
जुओ योगदृष्टि
८२७, ९३२, १११६, १२३९
१२४०, १२४९, १३११-१२, १३१६, १३५०, स्वच्छन्द १३९१, १३९९, १४२७, १४३३-१४३४, १४७५, १४८२, १४९४, १४९७-१४९८, १५०४, १५०६, १५०९, १५१४, १६२३- स्वतन्त्र १६२४, १६२७, १६२९, १६७४ - १६७५, स्वतन्त्रसाधन १७२४, १७९३-१७९४, १७९७, १८०६, स्वप्न १८१३, १८३६, १९०६, १९०८, १९३६
जुओ यम जुओ चारित्र
१६२, ३४९-३५१, ३५३, ३५७
३६१, ३६५-३६६, ३६८, ३७० ३७१, ३७९,
४०२, ४२२, ४७२-४७३, ५०१, ५०३, स्वप्नभूमिका (चतुर्थी) १६२७
५१६, ५५७, ५६५, ६४१-६४२, १०३५, स्वप्रशंसा
१८८५
स्तोत्र पूजा स्त्रीस्वरूप
स्थापनाभिक्षु
स्थिर यम
स्थिरा दृष्ट स्थैर्य (स्थिरत्व)
स्थैर्ययम
स्नातक
स्नान
१४०४, १४७६, १४८१-१४८२, १४९७, स्वभाव
२१२९, २१३७
स्पर्शज्ञान
स्पर्शवती प्रवृत्ति
स्फटिकमणि
स्फोट
स्मृति
स्मृतिसाङ्कर्य
स्याद्वाद
जुओ ज्ञान ( अवशिष्ट)
जुओ प्रवृत्ति (पातञ्जल )
विषयवतीप्रवृत्ति
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147
८१४-८१५, ८१८, ८२१, ८२४, ८३१, ९०३ ९०४, ९६१, १०२७-१०२८, १०६९१०७१, ११४०-११४२, १७१८-१७१९, २०२४ २०२५ २१०९-२११०, २११२
२११५, २१२३-२१२५, २१४१-२१४३, २१६१-२१६२
१६१, १६२-१६३, २७१, ३६२, ४००, ४३०, ५२३, ९५१, ११०६, १५२९,
१५३८, २११३
७२८
४४८
९०, २६२, २७१, २७९, ३८३, ४६७, ६७०, ७३३, ७५०, ७५२, ७७६, ७७८, ८१०, ८२४, ९५६, १०२२, १११७, ११९७, १२३५, १२४९, १४५०, १४८२, १५६९-१५७०, १६२३, १६२७-१६२९, १७०८-१७११, १७७०, १८२३, २०७५
(१) उपचरितस्वभाव
३२७, ३२८ (i) स्वाभाविक उपचरितस्वभाव ३२७-३२९ (ii) औपाधिक उपचरितस्वभाव ३२७-३२९ (२) अनुपचरितस्वभाव
३२७
७२७, ७४३, ७७७-७८, १६८५ स्वभाववाद
१७८५
जुओ वृत्ति
जुओ साङ्कर्य
स्वभावसमवस्थान
स्वरूपतो मोक्षमार्ग
स्वरूपपरा भूमिका
स्वरूपयोग्यता
स्वरूपशुद्ध
५६-५७, ९८-९९, १०४ १०६, १२५, २०७, २११-२१४, २३२-२३३, ४३०, ४८९-४९०, ५६८, ५८१-५८२, ५९२, ५९९, स्वरूपशुद्धानुष्ठान ६०१, ६०५, ६१०-६११, ६१४, ६२०, स्वरूपशुद्धि ६२६-६२७, ६३९, ६७६, ६७८, ७३४, स्वरूपस्थिति ७९४, ७९७, ८०६, ८०८, ८१०-८११, स्वरूपावस्थान
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जुओ वाद
१९४७
जुओ मोक्षमार्ग
जुओ उपासनाभूमिका
जुओ योग्यता
९८३
जुओ अनुष्ठान ( विषयशुद्धादि ) जुओ शुद्धि
१६८२
७४१, ८०९ ८१०, १३४९
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