Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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(१३) समाधिप्रारम्भपरिणाम ८२९
(१४) शुभपरिणाम २२, ६८७-६८८, ६९५, ७११,
७१३-७१६, ९४८, ९६३, ९७०, ९९५, ११००, १२०७, १३७५, १५३९, १६६१, १९०३
(१५) मोहपरिणाम १४२८
परिणामिकारण
परिणाम प्रमाणत्व
परिणामलक्षण भोग
परिणामशुद्ध
परिणामिनित्यता
परिणामी
परित्तसंसार
परिव्राजक
• द्वात्रिंशिअअअरए तथा 'नयसता' व्याप्यामां वर्षावेिसा पद्दार्थोनी याही •
(६) भूमिपरीक्षा
(७) श्रोतृपरीक्षा
(८) पात्रपरीक्षा
१११०, १७१४, १८२३
९४८, १०१०
+ जुओ संसारपरित्तीकरण
४८१, ४९९, ५०२-५०३,
जुओ कारण
परिहासकथा
परीकथा
परीक्षा
५३, ४२३, ५३३, ९७०, १६३६
जुओ भोग- भोग (पातञ्जल ) जुओ शुद्धि
ओ नित्यता
९३, ६१४, ६१९, ७६७-७६९,
१८६१, १८६८, १८८०, १८८८ १३०५
(१) हंस
(२) परमहंस ३९५, ४०४, ५०२-५०३,
(१) कषपरीक्षा (२) छेदपरीक्षा
(३) तापपरीक्षा (४) ताडनपरीक्षा
(५) देशपरीक्षा
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१०३२,१०८०,१२८७-१२८९,१३०५, १८६३,
१८६८, १८८७-१८८८, १९३४, २१४६ (i) ब्रह्मकोटिपरमहंस
(ii) ईशकोटिपरमहंस
(३) कुटीचर
(४) बहूदक
(५) अवधूत
१०३२
१०३२
१३०५
१३०५
१८८७
जुओ कथा (ग्रन्थान्तरगत ) -संकीर्णकथा जुओ कथा (ग्रन्थान्तरगत ) -संकीर्णकथा
९३, ४०१, ५४१, १८८९-१८९० ९३, ४०१, ५४१, १८८९-१८९० ९३, ४०१, ५४१, १८८९-१८९० १८९०
१५०७
६१
जुओ श्रद्धा (साकारादि)
१८८, ३२८, ५७७-५७९, ६१०
६१५, ६८८, ७३३, ७९७, १२०४, १२५९, १३१४, १३५१-१३५३, १३६२-१३६३, १३६६, १४३६, १५२७, १६२६, १८७०, २११०-२१११, २११६, २१२१,
परोक्षश्रद्धा
पर्याय
३०५
८६
२१३२, २१५९
(१) व्यञ्जनपर्याय १२३६, १३६६ (२) अर्थपर्याय
१३६६
(३) शुद्धपर्याय
५२९, ५७६, ७३३, ७३४, २११२, २१३०-२१३१
(४) अशुद्धपर्याय ७३३ (५) अनुत्पादपर्याय १३७५
(६) सर्वविरतिपर्याय १९१६, १९२०, १९५१-१९५३,
१९८२, १९८५
(७) पर्याय (बौद्धमान्य) ६०४, १६०२ (८) पर्याय ( दिगम्बरीय ) १३६६ (९) पर्यायशब्द
(i) मार्जारपर्यायशब्द
४६४
(ii) पारावतपदीपर्यायशब्द
४६५
(iii) अहिंसापर्यायशब्द
६०८
(iv) बुद्धिपर्यायशब्द
८१९
(v) परमात्मपर्यायशब्द १५७६, १५८०, ११२५,
११४६
(vi) कर्मपर्यायशब्द (vii) भिक्षुपर्यायशब्द (viii) सम्प्रज्ञातयोगपर्यायशब्द (ix) मोक्षपर्यायशब्द (१०) पर्यायशब्दार्थ पर्याय (दिगम्बरीय) जुओ पर्याय पर्याय (बौद्धमान्य) जुओ पर्याय
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११२९-३१, ११८८
१८७०-१८७५, १८७९
१३६९ १५९७
६१६
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