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छत्तीस
सहायता दी। श्री धनंजय कांगले फोटोग्राफर निपाणी (बेलगांव) ने आचार्य महाराज के निवास स्थान भोजग्राम पहुँचकर सुन्दर चित्र निस्वार्थ भाव से खींचकर दिए। प्रोफेसर पी.सी. सेठी, एम.एस.सी., साइंस कॉलेज, नागपुर, श्रीमंत ऋषभ कुमार जी, बी. ए., खुरई, श्री वीरकुमार जी, बी. एस. सी., लोणंद श्री बाबूराव जी दोशी, वकील, फलटण तथा मास्टर नन्हेंलाल जी, सिवनी, नेमचन्द जी जैन, एम. ए., जबलपुर द्वारा महत्वपूर्ण सामग्री तथा सहयोग प्राप्त हुआ। सिंघई हेमचन्द जी तथा सिंघई नेमचंद जी, जबलपुर का सहयोग भी उपयोगी रहा। उपयोगी बातें बताने में सर्व प्रथम हमारे पूज्य पिता जी, संघ-भक्त शिरोमणि सेठ दाड़िमचन्द जी जवेरी बंबई, धर्मप्रेमी वकील श्री तलकचन्द शहा फलटण, गुरूभक्त सेठ चंदूलाल जी सर्राफ, श्री निरंजन लाल जी, बंबई आदि का नाम उल्लेखनीय है । प्रेस कापो तैयार करने में कामर्स कालेज के विद्यार्थी चुन्नीलाल जैन ने बहुत श्रम किया। महान तपस्वी मुनिराज वर्धमानसागर जी मुनिराज नेमिसागर जी मुनिराज पायसागर जी मुनिराज वीरसागर जी, मुनि समन्तभद्र जी, श्री क्षुल्लक सुमतिसागरजी से (फलटण वाले) जिनका महाराज से निकट परिचय रहा है, महत्वास्पद बातें ज्ञात हुई थीं। इन पूजनीय तपस्वियों ने अपने मंगलमय आशीर्वाद द्वारा हमें कृतार्थ भी किया था ।
समाज के प्रमुख नेता तथा उच्चकोटि के धर्मज्ञ एवं शास्त्रज्ञ हमारे पूज्य पिता जी सिंघई कुंवरसेन जीके कारण हमारे लेखन कार्य के सर्व विघ्न दूर हुए हैं तथा सब प्रकार की अनुकूलता उनके पुण्य प्रसाद से मिली है।
उनकी अवस्था इस समय ८० वर्ष के समीप है और उन्होंने लौकिक कार्यों को छोड़कर आत्मकल्याण करने को ही अब अपना सच्चा परिवार मान उस ओर प्रवृत्ति की है। वे अपना अधिक समय जिननाम-स्मरण तथा तत्वचिंतन में व्यतीत करते हैं। उनकी आचार्य महाराज में अपार भक्ति है । यदि उन्होंने हमें सर्व प्रकार की स्वाधीनता न दी होती तो ऐसा चरित्र बनाना स्वप्न में भी संभव न होता ।
और भी अनेक सत्पुरूषों द्वारा सहायता प्राप्त हुई है, जिससे इस ग्रंथ निर्माण का कठिन कार्य सम्पन्न हो सका है। इन सभी सहायकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक 'आभारी' शब्द ही हमारे पास है । इतने बड़े ग्रंथ का अल्प समय में प्रकाशन होने के कारण प्रूफ शोधन का कार्य जितना निर्दोष बनना चाहिए था, न हो पाया। फिर भी अत्यधिक श्रम द्वारा जितनी सावधानी संभव थी, उसमें तनिक भी प्रमाद नहीं किया गया ।
जिनेन्द्र भगवान की भक्ति तथा आचार्य शान्तिसागर महाराज के पुण्य स्मरण द्वारा हमारी आत्मा को पर्याप्त प्रकाश तथा बल प्राप्त होता रहा है, उनके चरण कमलों को हमारी प्रणामांजलि है।
२६ जनवरी, १६५३
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पं. सुमेरुचन्द्र दिवाकर
दिवाकर - सदन, सिवनी (म. प्र. )
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