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सज्जन को विद्या स्नेह को गंगा प्रवाहित करती है। एक कवि ने कहा है - लाखों सेती पूजनीय यतियों में अग्रनीय,
चारित्र से शोभनीय कर्म मल धोहिंगे। द्रव्यवंत देख डर, खुशामदि होय कर,
दियो न आशीर्वाद धर्म धारी मोहिंगे। रुग्ण सु अवस्था मांहि सुयात्रा करत रहे,
.. समाधि मरण कर स्वर्ग गये सोहिंगे। मोह हारी, गुणधारी, उपकारी, सदाचारी,
, मुनीद्र चन्द्र सिंघ से हुए है न होहिंगे। मारवाड़ के सुधारक..."
आपकी गिह वृत्ति थी। जिस समय समाज का प्राणी मात्र चारित्र हीन और धर्म विहीन बनता जा रहा था- उस समय आपने जैन समाज को धर्मोपदेशकर सन्मार्ग में लगाया । अनेक ग्रामो नगरो में भ्रमण करके अपने वचनामृत के द्वारा धर्म पिपाम् भव्य प्राणियों को सतुष्ट करते हुये राजस्थान के अन्तर्गत मुजानगढ नगर में पधारे। वि० सं० १६६९ में आपने यहां चनुमसि किया। इस मारवाड देश की उपमा आचार्यों ने संमार को दी है। जहां पर अतीव उष्णता अतीव ठंडक है- गर्मी के दिनो में भीषण सूर्य की किरणो से नप्तायमान नि मे ज्वाला निकलती है। आपने जिस समय राजस्थान में पदार्पण किया उस समय लोग मुनियो की चर्या से अनभिज्ञ थे- खान पान अशुद्ध हो गया था- आपने अपने धर्मोपदेश से जनता का सम्बोधन किया- उनको श्रावकाचार ' की क्रियाओं का ज्ञान कराया । आपके सदुपदेश से कई व्रती बने। मारवाड़ प्रांत के लोगों को सुधारणा का श्रेय आपको ही है। मेरी मधुर स्मृति
चतुर्मासांतर महाराज श्री लाडनू डेह लालगढ आदि नगरो में विहार कर मैनसर ग्राम में आये । मेनसर एक छोटा सा ग्राम है- जहां पर एक मन्दिर है- जिसमे कृष्ण पापण को पार्श्वनाथ की मूर्ति है- शिखरबंध मन्दिर है उस समय श्रावको के २५ घर थे वर्तमान में तो एक घर भी नही है- केवल मन्दिर है । वही पर मेरा जन्म हुआ है। वहां पर वालू रेत के धोरे है रेल गाड़ी मोटर आदि वाहन का जाना दुष्कर हे- माघ के महीने में महाराज का उस गाव में पदार्पण हुआ- जनता के हृदय सरोवर में उल्लास की नवीन उमियां लहराने लगी। इस देश में ऐसे घोर तपस्वी का आना परम आश्चर्यजनक था। जो सन्मार्ग को भूले हुये थे जिनका खान पान अशुद्ध हो गया था- उनको अपने धर्मोपदेश से सन्मार्ग दिखाया । जिस समय महाराज श्री का मेनसर गांव में पदार्पण हुआ- उस समय मेरी आयु सात वर्ष को थी । परन्तु महाराज श्री की उपदेश के समय एक हाथ में लाल रंग की पुस्तक दाहिने पैर वाये पैर के ऊपर एक हाथ की अंगुली ऊपर उठाई हुई जो मुद्रा थी वह अभी भी मेरे हृदय पटल पर अंकित है। उनकी मृदु वाणी की झंकार मेरे कानो मे गूज रही है । मेरे कसी महान पुण्य का उदय था, [२२]