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कर्नाटक में जैन धर्म | 27
कर्नाटक के छोटे राजवंश
कर्नाटक में पृथक् राजा या सामन्त आदि के रूप में और भी अनेक जैन धर्मानुयायी वंश रहे हैं जो थे तो छोटे किन्तु धार्मिक प्रभाव के उनके कार्य बहुत बड़े थे (जैसे कारकल का राजवंश, हुमचा का सान्तर राजकल आदि) । इनका भी संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है।
सेन्द्रक वंश
नागरखंड या बनवासि के एक भाग पर शासन करनेवाले इस वंश का बहुत कम परिचय शिलालेखों से मिलता है। ये पहले कदम्ब शासकों के और बाद में चालुक्यों के सामन्त हो गये । जैन धर्मपालक इस वंश के सामन्त भानुशक्ति राजा ने कदम्बराज हरिवर्मा से जिनमन्दिर की पूजा के लिए दान दिलवाया था। इसी प्रकार इस वंश के द्वारा एक जैन मन्दिर के निर्माण और पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) के शंख जिनालय के लिए भूमिदान का भी जल्लेख मिलता है।
सान्तर वंश
जैनधर्म के परम पालक इस वंश का मूलपुरुष उत्तर भारत से आया था। वह भगवान पार्श्वनाथ के उरगवंश में उत्पन्न हुआ था। उसकी कुलदेवी पद्मावतीदेवी थी जो कि पार्श्व प्रभु की यक्षिणी है। इस देवी की अतिशय मान्यता आज भी हुमचा में एक लोक-विश्वास और पूजनीयता में अग्रणी है। इस वंश की राजधानी पोम्बुर्चपुर (शिलालेखों में नाम) थी जो घिसते-घिसते हुमधा (हुंचा) हो गई है । वहाँ पद्मावती का मन्दिर दर्शनीय है। राजमहल के अवशेष भी हैं। यह स्थान उत्तर भारत के महावीरजी या राजस्थान के तिजारा जैसा लोकप्रिय है।
सान्तरवंश का प्रथम राजा जिनदत्तराय था। उसी ने कनकपुर या पोम्बुर्चपुर (हुमचा) में इस वंश की नींव पद्मावती देवी की कृपा से डाली थी। इस वंश द्वारा बनवाए गए जैन मन्दिरों, दान आदि का विस्तत परिचय 'हमचा' के प्रसंग में दिया गया है। पाठक कृपया उसे अवश्य पढ़ें। इस वंश की स्थापना की उपन्यास जैसी कहानी भी वहाँ दी गई है।
सान्तर वंश की एक शाखा ने कारकल में भी राज्य किया। इसी जिनदत्तराय के वंशज भैरव-पुत्र वीर पाण्ड्य ने कारकल में बाहुबली की लगभग 42 फुट ऊँची (41 फुट 5 इंच ऊंची) प्रतिमा कुछ किलोमीटर दूर से किस प्रकार लाकर सन् 1432 ई. में स्थापित की थी, इसका रोमांचक विवरण इस राजवंश के शासकों सहित कारकल के प्रसंग में इसी पुस्तक में दिया गया है। इस प्रतिमा के दर्शनों के लिए आज भी यात्री वहाँ जाते हैं और इस प्रतिमा को तथा वहाँ की चतुर्मुख बसदि को देखकर पुलकित हो उठते हैं । दोनों ही छोटी वृक्षहीन सरल पहाड़ियों पर हैं। यह स्थान मूडबिद्री से बहुत पास है।
कर्नाटक में सान्तर राजवंश ने जैनधर्म की जो ठोस नींव डाली वह भुलाई नहीं जा सकती। श्रवणबेलगोल की गोम्मटेश्वर प्रतिमा के बाद दूसरे नम्बर की बाहुबली प्रतिमा इसी सान्तर वंश की देन है । जिनदत्तराय ने अपना राज्य लगभग 800 ई. में स्थापित किया था। कारकल में इस वंश ने लगभग 1600 ई. तक राज्य किया।
रट्ट राजवंश
शिलालेखों से ही ज्ञात होता है कि इस वंश का प्रथम पुरुष पृथ्वीराम था जो कि मैलपतीर्थ के