Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
अल्प आयुमें वेद-वेदांत, व श्रुति, स्मृति, काव्य, भाषा, तर्क आदिका ज्ञान पूर्ण कर, स्वयंके ५०० शिष्यों सहित गौतमग्राम ( गुणावा ग्राम ) में एक महाविद्यालय खोला। वहाँ वे लोगोंको अनेकान्त विद्यासे विरुद्ध एकान्त ज्ञानस्वरूप वेद-पुराणको पढ़ाने लगे ।
उन्हीं दिनों वैशाली गणराज्यके कुण्डलपुर ग्राम में माता प्रियकारिणीकी कोखसे तीर्थंकरदेव महावीर प्रभुने जन्म लिया था। भगवान महावीरने उग्र शुक्लध्यानरूपी तप द्वारा, निज आत्माकी अत्यंत विशुद्धताकी श्रेणी आरूढ़ करके, चार घातिया कर्मोंको नाश करके, ऋजुकूला नदीके किनारे पर, ४२ वर्षकी उम्र में, वैशाख शुक्ला १०को केवलज्ञान प्राप्त किया । इन्द्रने भगवानका ज्ञानकल्याणक महोत्सव बड़े धूम-धामसे मनाया । भगवान मौनरूपसे समवसरण सहित विहार करतेकरते राजगृही नगरीके विपुलाचल पर्वत पर श्रावण कृष्णा - एकमको पधारे। केवलज्ञान होनेके पश्चात् ६६ दिन तक भगवानकी वाणी नहीं खिरी, परन्तु भव्यजीव चातक पक्षीकी भांति भगवानकी वाणीकी चाह में वहीं बैठे रहे । तीर्थंकरके तीर्थ प्रवर्तनका योग ऐसा ही होता है, कि केवलज्ञान होने पर भगवानकी वाणी भव्योंके भाग्यवश खिरती है, फिर भी वाणी न खिरनेसे इन्द्रसे रहा नहीं गया। उसने अवधिज्ञानसे जाना, कि भगवानकी वाणी झिलने योग्य श्रोता नहीं है । अतः भगवानकी वाणी नहीं खिर रही है। उसने साथमें अवधिज्ञानसे यह भी जाना, कि ऐसा योग्य श्रोता और कोई नहीं परन्तु वेदपाठी गौतम ही है ।
इन्द्र गौतमको समवसरणमें लानेके लिए एक युक्ति रची। वह वामन ब्राह्मणका गौतमकी सभा इन्द्र
(19)
B
જયદેવ