Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान श्री आचार्यदेव पुष्पदंत व आचार्य भूतबलि
अग्रायणीय पूर्वांशके ज्ञाता आचार्य धरसेनके ज्ञानको कुशाग्रबुद्धिसे धारण करनेवाले भगवान श्री पुष्पदंत व भूतबलि आचार्यसे दिगम्बर समाजका प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। ऐसे महान आचार्यवरोंके जीवनके बारेमें भविष्यवाणीवत् आख्यान करती कथा 'श्रुतावतार में दी गई है, वह इस प्रकार है :_ 'भरत क्षेत्रके बांमिदेश-ब्रह्मदेशमें वसुन्धरा नामकी नगरी होगी। वहाँके राजा नरवाहन और रानी सुरूपा, पुत्र न होनेके कारण खेद-खिन्न होंगे। उस समय सुबुद्धि नामका सेठ उन्हें पूजा करनेका उपदेश देगा। तद्नुसार पूजा करनेपर राजाको पुत्रलाभ होगा और उस पुत्रका नाम 'पद्म' रखा जाएगा। तदन्तर राजा सहस्रकूट चैत्यालयका निर्माण करायेगा और प्रतिवर्ष यात्रा करेगा। सेठ भी राजकृपासे स्थान-स्थान पर जिनमन्दिरोंका निर्माण करायेगा। इसी समय वसन्त ऋतुमें समस्त संघ यहाँ एकत्र होगा और राजा सेठके साथ जिनपूजा करके रथ चलावेगा। इसी समय राजा अपने मित्र मगधसम्राटको मुनीन्द्र हुआ देख, सुबुद्धि सेठके साथ विरक्त हो दिगम्बरी दीक्षा धारण करेगा। इसी समय एक लेखवाहक वहाँ आयेगा। वह जिनदेवको नमस्कार कर मुनियोंकी तथा परोक्षमें धरसेन गुरुकी वन्दना कर लेख समर्पित करेगा। वे मुनि उसे पढ़ेंगे, कि गिरनारके समीप गुफावासी धरसेन मुनीश्वर अग्रायणीय पूर्वकी पञ्चमवस्तुके चौथे प्राभृतशास्त्रका व्याख्यान आरंभ करनेवाले हैं। धरसेन भट्टारक कुछ दिनोंमें नरवाहन और सुबुद्धि नामके मुनियोंको पठन, श्रवण और चिन्तन कराकर आषाढ़ शुक्ला एकादशीको शास्त्र समाप्त करेंगे। उनमेंसे एककी भूत(व्यंतरजातिके देव) रात्रिको बलिविधि (पुष्पोंसे पूजा) करेंगे और दूसरेके चार दाँतोंको सुन्दर बना देंगे। अतएव भूत-बलिके प्रभावसे नरवाहन मुनिका नाम भूतबलि और चार दाँत समान हो जानेसे सुबुद्धिमुनिका नाम पुष्पदंत होगा'।
इस आख्यानके बारेमें इतिहासविदोके भिन्न-भिन्न मत होने पर भी, इससे यह फलित होता है, कि भगवान पुष्पदंत आचार्य व भूतबलि आचार्यका दीक्षा नाम कुछ अन्य था, परन्तु प्रसिद्ध कथान्यायसे उनके नाम ‘पुष्पदंत और भूतबलि' रखा गया था। उपरोक्त
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