Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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इतिहासकारोंनुसार सर्वप्रथम पार्श्वभ्युदय लिखनेके पश्चात् अपने गुरु वीरसेनस्वामीकृत जयधवला टीका पूर्ण करनेके बाद अन्तसमयमें आपने आदिपुराणकी रचना की हो, जिससे वह अपूर्ण रही और उसे आपके शिष्य आचार्य गुणभद्रस्वामीने पूर्ण की।
(१) यह एक पार्श्वप्रभुके दीक्षा पश्चात् कमठ द्वारा हुए उपसर्गके समय, पार्श्वप्रभुके आत्मध्यानको दर्शाता सुंदरकाव्य है। आपका पार्वाभ्युदय कालिदासके 'मेघदूत'की समस्यापूर्ति है। इसमें आपने 'मेघदूत'के कहीं एक और दो पदोंको लेकर रचना की है। इस रचनामें सारा मेघदूत समाविष्ट होने पर भी जहाँ 'मेघदूत' एक श्रृंगाररससे ओतप्रोत है, वहीं यह रचना आपने शान्तरसमें परिवर्तित कर दी है। साहित्यिक दृष्टिसे यह काव्य बहुत सुंदर व काव्यगुणोंसे मंडित है।
आचार्य जिनसेनके कथनानुसार आपने जयधवलाके पूर्वमें ही पार्वाभ्युदय ग्रंथकी रचना पूर्ण कर दी थी। जिससे विद्वानोंके मतानुसार पार्वाभ्युदय ग्रंथकी रचना आपने मात्र करीब २० वर्षकी उम्रमें ही पूर्ण की थी।
(२) ४००००श्लोक प्रमाण जयधवला टीका पूर्ण की जो, कि आठ कर्मोमेंसे मात्र मोहनीयकर्मकी ही विस्तृत विवेचना है व उसमें मोहके नाशका विस्तृत उपाय बताया है। यह टीका यद्यपि आचार्य वीरसेनस्वामी द्वारा रची गयी टीकाका बाकी रहा बहुअंश भाग है, जो आपके द्वारा पूर्ण हुआ है। इस टीकाके अभ्याससे पाठक आपके द्वारा प्ररूपित कर्म-सिद्धान्तकी महिमा सह नतमस्तक हुए बिना नहीं रहता। इसकी भाषा-शैली अत्यंत सुगम है।
(३) आदिपुराणमें भगवान आदिनाथका जीवन-चित्रण इतना विस्तृत व सुंदर है, कि पाठक रसिकतासे इसे पढ़ा ही करे व इसे पढ़ते-पढ़ते किसी भी स्थलमें अघाते नहीं हैं।
आपका काल ई.स. ८१८-८७८के आसपास होना इतिहासविद मानते हैं। आपका आयुष्य करीबन ९०-९५ वर्षका हो एसा अनुमान है।
___ जयधवला टीका (पूर्ण) व आदिपुराण(आद्य भाग)के रचयिता आचार्य जिनसेन म (द्वितीय) भगवंतको कोटि कोटि वंदन।
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