Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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आपने स्वयंको भगवान आचार्य वीरनन्दिका प्रशिष्य व आचार्य बलनन्दिका शिष्य बताया है। आपने विजयगुरुके पास ग्रंथोंका अध्ययन किया अर्थात् आचार्य श्री विजयगुरु आपके विद्यागुरु थे। ऐसा भी बताया जाता है, कि 'प्रमेयकमल मार्तण्ड'के रचयिता भगवान प्रभाचन्द्राचार्य(चतुर्थ)के आप दीक्षागुरु थे।
परन्तु आपके व प्रभाचन्द्र (चतुर्थ)के समयको देखते ऐसा प्रतीत होता है, कि श्री पद्मनन्दिजीको आचार्य पदवी प्राप्त होनेके पूर्व ही मुनि अवस्थामें आपने आचार्य प्रभाचन्द्रजीको दीक्षा दी हो।
'जम्बूद्वीपपण्णति' लिखनेका निमित्त बताते हुए लिखा है, कि 'राग-द्वेषसे रहित श्रुतसागरके पारगामी आचार्यदेव माघनन्दी हुए। उनके शिष्य सिद्धान्त-महासमुद्रमें कलुषताको धो डालनेवाले गुणवान आचार्य सकलचन्द्र गुरु हुए। उनके शिष्य निर्मल रत्नत्रयके धारक श्री नन्दिगुरु हुए। उन्हींके निमित्त यह 'जम्बूद्वीपपण्णत्ति' लिखी गई है। गुरुपरम्पराके संदर्भमें आपने स्वयंको त्रिदण्डरहित, त्रयशल्यविशुद्ध, गारवत्रयसे रहित, सिद्धान्तके पारगामी व तपनियम-योगसे संयुक्त पद्मनंदि मुनि बताया है।
___ आपकी ग्रंथ रचनासे ज्ञात होता है, कि आप प्राकृतभाषा व सिद्धान्तग्रंथोंके पारगामी थे। आपने स्वयंको 'वरपउमनंदि' कहा है। इससे स्पष्ट है, कि स्वयं अन्य पद्मनन्दिसे बिलकुल भिन्न है।
जम्बूद्वीपपण्णत्ति ग्रंथ रचनाका स्थान वारानगर बताया है। जिसका राजा नरोत्तमशक्ति भूपाल जो सम्यग्दृष्टि व कलाओंमें कुशल व दानशील था। यह नगर जिनभवनोंसे विभूषित, सम्यग्दृष्टियों, मुनिजनोंसे मण्डित (अर्थात् मुनिपुंगव वहाँ आते-जाते रहते थे) व अत्यंत रमणीय था।
___'जम्बूद्वीपपण्णत्ति', 'प्राकृतपंचसंग्रहवृत्ति' व 'धम्मपसायण' नामक ग्रंथकी रचनाएँ आपने की थी, ऐसा इतिहासकारोंका मानना हैं।
आप करीब ई.स. ९७७से १०४३के आचार्य थे। ऐसा विद्वानोंका मानना है। 'जम्बूद्वीपपण्णत्ति' ग्रंथके रचयिता आचार्य पद्मनंदिनाथ (प्रथम)को कोटि कोटि वंदन।
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