Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव(मुनि)
सिद्धान्त, अध्यात्म व न्यायके त्रिवेणी संगम स्वरूप आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवके कृपामृत द्वारा भव्योंके भाग्यसे मात्र प्रथम २५ गाथारूप व बादमें ५८ गाथारूप द्रव्यसंग्रहकी रचना करके, आत्मार्थीयोंको कल्याणका मार्ग सुस्पष्ट कर दिया।
आप राजा भोजके समयमें इस धरातलको पवित्र कर रहे थे; तब राजस्थानके कोटाबूंदीके पास चम्बल नदी पर स्थित 'केशवराय पाटन', कि जो राजा भोजके परमार-राज्यके अन्तर्गत मालवामें 'तपोवन'सा है, जो उस समय मंडलेश्वर ‘आश्रमनगर के रूपमें प्रसिद्ध था। आपका विहार करते हुए वहाँ पदार्पण हुआ। वहाँ राजश्रेष्ठी सोमनाथ श्रीपाल हेतु आपने भगवान मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरके मंदिरमें 'द्रव्यसंग्रह' की रचना की थी, क्योंकि बृहद्रव्यसंग्रह अनुसार 'मालवदेशमें धारानगरीका स्वामी राजा भोजदेव था। उसके मंडलेश्वर श्रीपालके आश्रम नामक नगरमें, श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरके चैत्यालयमें भाण्डागार आदि अनेक नियोगोंके अधिकारी सोमनाथ श्रेष्ठिके लिए, श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवने प्रथम २५ गाथाओंके द्वारा लघुद्रव्यसंग्रह नामक ग्रंथ रचा। तत्पश्चात् विशेष तत्त्वोंके ज्ञानके लिए ५८ गाथाओंमें बृहद्रव्यसंग्रह रचा'।
आप आचार्य नयननन्दिके शिष्य व श्रीनन्दिजीके प्रशिष्य थे। आपके शिष्यका नाम आचार्य वसुनन्दिजी था।
आपने श्री सोमनाथ राजश्रेष्ठी पर कृपारूपसे 'लघुद्रव्यसंग्रह' व 'बृहद्रव्यसंग्रह' ऐसे दो शास्त्रोंकी रचना की। यह हमारा भाग्य है, कि पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामीके प्रतापसे उनके ग्रंथोंके दर्शन ही नहीं, अपितु मुमुक्षुओंको उन शास्त्रों पर प्रवचन सुननेका भी लाभ मिला। इतना ही नहीं उसमें भरा अध्यात्मका मर्मरूप सिद्धान्त–'निश्चय व व्यवहाररूप मोक्षमार्ग दोनों एक ही साथ साधकको निर्विकल्प ध्यानमें प्रकट होते हैं'–भी भव्यजीवोंको प्राप्त हुआ ।। आपका यह अपूर्व सिद्धान्त महा उपकारी श्री कहानगुरुके कृपामृतसे, हमें यत्किंचित् समझने मिला। यह सब आपका ही श्री सोमनाथ राजश्रेष्ठि पर बरसे कृपामृतके अंशका प्रताप है। आपका काल विद्वान वर्ग ई.स. १०६८ निर्णित करते हैं। मुनिवर श्री नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेव भगवंतको कोटि कोटि वंदन ।
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