Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेवके गुरु जिनचन्द्रस्वामीसे आप भिन्न आचार्य जिनचन्द्रजी हैं। आपने 'सिद्धान्तसार' ग्रंथकी रचना की है। आपके 'सिद्धान्तसार' ग्रंथ परसे ज्ञात होता है कि, इस ग्रंथ पर 'गोम्मटसार जीवकाण्ड' व 'गोम्मटसार कर्मकाण्ड' का काफी असर है। इस परसे आप जिनसिद्धान्तके ज्ञाता थे। यह स्पष्ट प्रतिभासित होता है। भगवान आचार्यदेव श्री जिनचन्द्रजी जिनचंद्र नामक अनेक आचार्य हुए है। उन सबसे भिन्न, अद्भुत प्रज्ञाके आप आचार्य अपनेमें अनेरे हैं। आपके ग्रंथके अध्ययनसे ज्ञात होता है, कि आपका समय गोम्मटसार जीवकाण्ड व कर्मकाण्डके रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके पश्चात् ई. सन्की ११वीं - १२वीं शताब्दी निश्चित होता है । आचार्य श्री जिनचन्द्रजी भगवंतको कोटि कोटि वंदन । डा (a 04 भूमांहि पिछली रयनिमें कछु शयन एकासन करन । (204) જયદેવ

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242