Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 216
________________ भगवान आचार्यदेव श्री वसुनन्दि वसुनन्दि नामक कई आचार्य हुए हैं। आपने 'प्रतिष्ठासार संग्रह' ग्रंथ संस्कृतमें व श्रावकाचार या 'उपासकाध्ययन' प्राकृत भाषामें लिखा है। इससे ज्ञात होता है, कि आप उभय भाषाके ज्ञाता थे। आपके उत्तरवर्ती आचार्योंने आपको सैद्धान्तिक उपाधिसे अलंकृत किया होनेसे, आप सिद्धान्तोंके भी मर्मी होने चाहिए। श्री कुन्दकुन्दाचार्यकी स्वाध्याय व विचारमग्न आचार्य वसुनन्दि आम्नायमें स्वसमय और परसमयके ज्ञायक भव्यजीवरूपी कुमुदवनको विकसानेवाले चन्द्रतुल्य श्रीनन्दि आचार्य हुए। श्रीनन्दि आचार्यके शिष्य श्री नयनन्दि मुनि हुए व नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द्र हुए। उन नेमिचन्द्रके प्रसादसे श्री वसुनन्दि आचार्यने उपासकाध्ययन लिखा है। आप धारा नगरीके राजा भोजके समयके हों ऐसा प्रतीत होता है। ___ आपकी रचनाएँ (१) प्रतिष्ठासारसंग्रह, (२) उपासकाध्ययन या श्रावकाचार, (३) मूलाचारकी आचारवृत्ति। आपका समय इ.स. १०६८ से १११८ माना जाता है। 'प्रतिष्ठासारसंग्रह' ग्रंथके रचयिता आचार्य श्री वसुनन्दिदेवको कोटि कोटि वंदन। (199)

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