Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ दिया गया। मृगावती कुछ दिनोंमें गर्भवती हुई। शुभ मुहूर्तमें उसने दो पुत्रोंको जन्म दिया, जिनमें ज्येष्ठका नाम शुभचन्द्र और कनिष्ठका नाम भर्तृहरि रखा गया । बचपन से ही इन बालकोंका चित्त तत्त्वज्ञानकी ओर विशेषरूपसे आकृष्ट था । अतएव वय प्राप्त होने पर तत्त्वज्ञानमें अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। एक दिन मेघोंके पटलको परिवर्तित होते हुए देखकर राजा सिंहको वैराग्य हो गया और उसने मुञ्ज और सिंहलको राजनीति सम्बन्धी शिक्षा देकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। राजा मुञ्ज अपने भाईके साथ सुखपूर्वक राज्य करने लगा । एक दिन मुञ्ज वनक्रीड़ासे लौट रहा था, कि उसने मार्गमें एक तेलीको कन्धे पर कुदाल रक्खे खड़े देखा, उसे गर्वोन्मत्त देखकर मुञ्जने पूछा - इस तरह क्यों खड़े हो ? उसने कहा कि, मैंने एक अपूर्व विद्या सिद्ध की है, जिसके प्रभावसे मुझमें इतनी शक्ति है, कि मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता। यदि आपको विश्वास न हो, तो अपने किसी सामन्तको मेरे इस लौहदण्डको उखाड़नेका आदेश दीजिए। इतना कहकर लौहदण्डको भूमिमें गाड़ दिया। संकेत पाते ही सभी सामन्त उस लौहदण्डको उखाड़ने में प्रवृत्त हुए, पर किसीसे भी न उखड़ सका । सामन्तोंकी इस असमर्थताको देखकर, शुभचन्द्र और भर्तृहरिने मुजसे निवेदन किया, कि यदि आदेश हो तो हम दोनों इस लौहदण्डको उखाड़ सकते हैं। मुञ्जने उन दोनों बालकोंको समझाया, पर जब अधिक आग्रह देखा तो उसने लौहदण्ड उखाड़नेका आदेश दे दिया। उन दोनोंने बालोंकी चोटीका फन्दा लगाकर देखते-देखते एकही झटके में लौहदण्डको निकाल फेंका। चारों ओरसे धन्य-धन्यकी ध्वनि गूँज ऊठी । तेली निर्मद होकर अपने घर चला गया। बालकोंके इस अपूर्व बलको देखकर मुञ्ज आश्चर्यचकित हो गया और वह सोचने लगा, कि ये बालक अपूर्व शक्तिशाली हैं और जब ये बड़े हो जायेंगे तो किसी भी क्षण मुझे राज-सिंहासनसे च्युत कर देंगे । अतएव इनको किसी उपायसे मृत्युके मुखमें पहुँचा देना ही राजनीतिज्ञता है। उसने मन्त्रीको बुलाकर अपने विचार प्रकट किए और कहा, कि शीघ्र ही उन दोनोंका वध हो जाना चाहिए । मन्त्रीने राजाको पूर्णतया समझानेका प्रयास किया, पर मुँजको मन्त्रीकी बातें अच्छी नहीं लगी । फलतः मन्त्री राजाज्ञा स्वीकार कर चला गया । मन्त्रीने एकान्तमें बैठकर उहापोह किया और अन्तमें वह निष्कर्ष पर पहुँचा, कि कुमारोंको इस समाचारसे अवगत करा देना चाहिए, अन्यथा बड़ा भारी अनर्थ हो जायगा । उसने शुभचन्द्र और भर्तृहरिको एकान्तमें बुलाया और राजाके निन्द्य विचार कह सुनाये । (187)

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242