Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 208
________________ एक दिन भर्तृहरिको चिन्ता हुई, कि उसका भाई शुभचन्द्र किस स्थितिमें है? अतः उसने अपने एक शिष्यको उसका समाचार जाननेके लिए भेजा। शिष्य जंगलोंमें घूमता हुआ उस स्थान पर आया, जहाँ आ.शुभचन्द्र तपश्चर्या कर रहे थे। उसने देखा, कि उनके शरीर पर अंगुल भर भी वस्त्र नहीं है। कमण्डलु और पीछीके अतिरिक्त अन्य कुछ भी परिग्रह नहीं है। शिष्य दो दिन निवास कर वहाँसे लौट आया और भर्तृहरिको समस्त समाचार आकर सुनाया। भर्तृहरिने अपनी तुंबीका आधा रस दूसरी तुंबीमें निकालकर शिष्यको दिया और कहा, कि इसे ले जाकर शुभचन्द्रको दे आओ, जिससे उसकी दरिद्रता दूर हो जाय और सुखपूर्वक अपना जीवन यापन करे। जब शिष्य रसतुंबी लेकर मुनिराजके समक्ष पहुँचा, तो उन्होंने उसे पत्थरकी शिला पर डाल दिया। शिष्यने वापस लौटकर भर्तृहरिको रसतुंबीकी घटना सुनायी, फिर भी वे स्वयं भाईकी ममतावश शेष रसतुंबीको लेकर आ.शुभचन्द्रके निकट आये। शुभचन्द्रने शेष रसको भी पाषाणशिला पर डाल दिया, जिससे भर्तृहरिको बहुत दुःख हुआ। आचार्य शुभचन्द्रने भर्तृहरिको समझाते हुए कहा-भाई, यदि सोना बनाना अभिष्ट था, तो घर क्यों छोड़ा ? घरमें क्या सोना-चाँदी, मणि-माणिक्यकी कमी थी? इन वस्तुओंकी प्राप्ति तो गृहस्थीमें सुलभ थी। अतः सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्तिके लिए इतना प्रयास करना व्यर्थ है। आ. शुभचन्द्रके उपदेशसे भर्तृहरि भी दीक्षित हो गया। भर्तृहरिको मुनिमार्गमें दृढ़ करने और सच्चे योगका ज्ञान करानेके लिए आचार्य शुभचन्द्रने 'योगप्रदीप' तथा 'ज्ञानार्णव'की रचना की। ___ आपने अपने ग्रंथमें आचार्य समन्तभद्रजी, पूज्यपादस्वामी, आचार्य अकलंकस्वामी, आचार्य जिनसेन स्वामी, आचार्य सोमचन्द्रदेव, आचार्य अमृतचन्द्रसूरि आदि कई आचार्योंके आगमोंका आधार दिया है। इससे ज्ञात होता है, कि आप बहुश्रुताभ्यासी थे। आपके ज्ञानार्णव ग्रंथका आपके पश्चात्वर्ती दिगम्बर आचार्योने ही नहीं, परंतु श्वेताम्बर आचार्य हेमचन्द्रजीने अपने ग्रंथमें भरपूर उपयोग किया है। जिससे ज्ञात होता है, कि आपकी रचना अतिप्रिय बनी है। यह वैराग्यका अनुपम ग्रंथ है। यह एक महाकाव्यसमा ग्रंथ है। आपने परम अध्यात्मतरंगिणी, ज्ञानार्णव व योगप्रदीप नामक ग्रंथोंकी रचना की है। आपका समय ईस. १००३-१०६८प्रतीत होता है। 'ज्ञानार्णव' के रचयिता आचार्य शुभचंद्रदेव भगवंतको कोटि कोटि वंदन। (191)

Loading...

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242