Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री अमितगति (द्वितीय)
आप आचार्य अमितगति (प्रथम)के शिष्य परम्पराकी द्वितीय पीढ़ीमें हुए आचार्य अमितगति (द्वितीय) हैं। एक महान सरस्वतीके भण्डारसमा आपने अपने मौलिक ग्रंथों द्वारा जिनधर्मको अक्षुण्ण बनाए रखा। आप माथुरसंघी होने पर भी जैनाभासी माथुरसंघकी परिपाटीके नहीं थे।
आपने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार बताई है।
आचार्य वीरसेन → आचार्य देवसेन - आचार्य अमितगति (प्रथम)- आचार्य नेमिषेण+आ. माधवसेन+आ. अमितगति (द्वितीय)की भूरि-भूरि प्रशंसा अपने ग्रंथमें की है-इस परसे ज्ञात होता है, कि आपको गुरुके प्रति भक्ति-समर्पणभाव अद्भुत था।
__ आप राजा मुञ्जकी सभाके 'वाचस्पतिराज' उपाधिसे अलंकृत एक रत्नके रूपमें स्वीकार किए गए थे। आप बहुश्रुत विद्वान थे। काव्य, न्याय, व्याकरण, आचारप्रभृति अध्यात्म आदि अनेक विषयों पर आपका प्रभुत्व था।
आपने अपने पञ्चसंग्रह ग्रंथकी रचना 'धार से सातकोस दूर ‘मसीदकिलौदा' अपरनाम 'मसूतिकापुर' गाँवमें की थी। आपकी निम्न रचनाएँ प्रसिद्ध हैं।
(१) सुभाषितरत्नसंदोह, (२) धर्मपरीक्षा, (३) उपासकाचार, (४) पञ्चसंग्रह, (५) आराधना, (६) भावनाद्वाविंशतिका, (७) चन्द्र-प्रज्ञप्ति, (८) सार्द्धद्वयद्वीप-प्रज्ञप्ति, (९) व्याख्या प्रज्ञप्ति, (१०) उसके अलावा लघु एवं बृहत् सामायिक पाठ, अमितगतिश्रावकाचार आदि भी आपके ही रचित माने जाते हैं।
__ आपका समय राजा मुञ्चका काल होनेसे, आप ई.स. ९८३-१०२३का प्रतीत होता है।
'सामायिक पाठ'के रचयिता आचार्य अमितगति (द्वितीय)को कोटि कोटि वंदन ।
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