Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव
वीरनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीदेव
नन्दीसंघ देशीयगणानुसार श्री वीरनन्दी आचार्य मेघचन्द्र विद्यके शिष्य थे और पीछे विशेष अध्ययन हेतु आचार्य अभयनन्दिकी शाखामें आए। आप आचार्य इन्द्रनन्दि व आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीजीके सहध्यायी थे। फिर भी ज्येष्ठ होनेके कारण आपको
आचार्य नेमिचन्द्रजी गुरु-तुल्य मानते थे। आप जनसाधारणके मनोभावों, ह्दयकी विभिन्न वृत्तियों एवं विभिन्न अवस्थाओंमें उत्पन्न होनेवाले मानसिक विचारोंके सजीव चित्रणकर्ता महाकवि थे। आप स्वयं सिद्धान्तवेत्ता ही नहीं, परंतु आप उसके मर्मज्ञ भी थे।
___श्रवणबेलगोलाके ४७वे शिलालेखसे स्पष्ट है, कि आचार्य गुणनन्दिके ३०० शिष्य थे। उसमेंसे ७२ सिद्धान्त-शास्त्रके मर्मज्ञ थे। इनमें देवेन्द्र सिद्धान्तिक सबसे प्रसिद्ध थे। देवेन्द्र सिद्धान्तिकके शिष्य कलधोतनन्दि या कनकनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्ती थे।
श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीदेवने गोम्मटसार-कर्मकाण्ड ग्रंथमें अभयनन्दि, इन्द्रनन्दि व वीरनन्दि इन तीनों आचार्योंको नमस्कार किया है। आचार्य वीरनन्दिके शिक्षागुरु अभयनन्दि, दादागुरु गुणनन्दि व सहाध्यायी इन्द्रनन्दि थे। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती आपके शिष्य या लघु-गुरुभाई प्रतीत होते हैं।
आपका ‘चन्द्रप्रभचरित' काव्य-प्रतिभाका चूड़ात्व निर्देशन है। आपका काल इतिहासकारोंनुसार ई.स. ९५०-९९० है। आचार्य श्री वीरनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीदेवको कोटि कोटि वंदन ।
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