Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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आप नन्दिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आम्नायमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिकके शिष्य थे । इतना ही नहीं आप भगवान आचार्य कुलभूषणके भी सधर्मा थे व शिलालेखोंके आधारसे आप कुलभूषणके गुरु भी थे।
आपके गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक थे तथा आपने अपने गुरुके रूपमें 'चतुर्मुख गुरु' का भी स्मरण किया है । इस परसे अनुमान है, कि 'चतुर्मुख गुरु' आपके या तो गुरुभाई हैं या द्वितीय गुरु हों।
माणिक्यनन्दि आचार्य आपके शिक्षागुरु थे। आप धारानगरीके राजा भोज द्वारा
सम्मानित व पूजित हुए थे । आप स्वयं राजमान्य राजर्षि थे ।
राजा भोजको जैन न्यायसम्बन्धित स्वरूप समझाते हुए आचार्य प्रभाचंद (चतुर्थ)
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आप 'पंडित' उपमासे भी अलंकृत थे। इतना ही नहीं, 'जैनेन्द्र व्याकरण' पर रचित आपकी रचना 'जैनेन्द्रन्यासशब्दाम्भोज भास्कर' के कारण आपको 'शब्दाब्ज दिनमणि की संज्ञा दी गई थी। आप महान तार्किक होनेसे व तार्किक ग्रंथोंकी रचना करनेसे 'प्रथित तार्किक' की उपमासे भी अलंकृत थे। इतना ही नहीं, आप वैयाकरणी भी थे।
आपने जो शब्दोंकी व्युत्पत्तियाँ खोली है, वे अपने में अद्भुत होनेसे आप 'असाधारण व्युत्पन्न पुरुष' भी थे। आपकी लेखनीके आधारसे यह भी ज्ञात होता है, कि आपको न्याय, सिद्धान्त, अध्यात्म, चरणानुयोग,