Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री प्रभाचन्द्र (चतुर्थ)
जिनधर्ममें प्रभाचन्द्र नामक अनेक आचार्य हुए हैं, जैसे :
(१) नन्दिसंघ 'बलात्कारगणकी पट्टावलियों अनुसार आचार्यदेव प्रभाचन्द्रजी (प्रथम) आचार्य लोकचन्द्रके शिष्य व आचार्य नेमिचन्द्रके गुरु थे। आपका काल ई.स. ५३१ से ५५६के बीच माना जाता है।
(२) जिन्होंने गृद्धपिच्छ उमास्वामीको अनुसरण करके एक द्वितीय तत्त्वार्थसूत्र बनाया। यह आचार्य प्रभाचन्द्रजी (द्वितीय) भट्ट अकलंकके परवर्ती होनेसे आपका काल ईसुकी सातवीं शताब्दी उत्तरार्ध माना जाता है। आपका दूसरा नाम 'बृहद्प्रभाचन्द्र'के रूपमें भी प्रसिद्ध है।
(३) राष्ट्रकूटके नरेन्द्र गोविन्दके ताम्रपत्र अनुसार आचार्यदेव प्रभाचन्द्रजी (तृतीय) तोरणाचार्य व पद्मनन्दिके शिष्य थे। आपका काल लगभग ई.स. ७९७ माना जाता है।
(४) आचार्यदेव प्रभाचन्द्रजी (चतुर्थ) महापुराणके कर्ता आचार्य जिनसेनजी(द्वितीय)के पूर्ववर्ती कुमारसेनके शिष्य थे। आपने न्यायग्रंथ 'चंद्रोदय'की रचना की थी। आपका काल ई.स. ९५०-१०२० होना निश्चित होता है। आप जिनसेनजी (द्वितीयके) सम-समयवर्ती भी होंगे।
आपकी गुरु-शिष्य परम्परासे ज्ञात होता है, कि आप दक्षिण राज्यके थे, क्योंकि ऐसी गुरु-शिष्य परम्परा दक्षिणमें ही होती है। वहाँसे आप अपने जीवनके अन्तिम वर्षों में उत्तरमें 'धारा'नगरीकी ओर विहार कर पधारे होंगे। वहीं आपको आचार्यदेव माणिक्यनन्दिजीका सम्पर्क होनेसे ही आपने स्वयंको उनका साक्षात् शिष्यत्व (शिक्षा-शिष्यत्व) प्रकट किया है। इससे संभव है, कि आपने आचार्य माणिक्यनन्दिजीसे न्यायका अभ्यास किया व उन्हीके जीवनकालमें ही आचार्य माणिक्यनन्दिजीके ‘परीक्षा-मुख'की १२००० श्लोकप्रमाण ‘प्रमेयकमलमार्तण्ड' नामक टीकाकी रचना की थी।
१. बलात्कारगण : नन्दिसंघकी एक शाखाका नाम।
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