Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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श्रावकोंको उपदेश देते हुए श्री दशरथस्वामी आचार्य एवं मुनिसंघ
भगवान आचार्यदेव श्री दशरथस्वामी
___ आचार्य दशरथस्वामी सिद्धान्त ग्रंथोंके ज्ञाता थे। आचार्य गुणभद्रजीने आपको अपना गुरु माना है, परंतु पंचस्तूप संघकी पट्टावलियों अनुसार आप धवला टीका रचयिता भगवान आचार्य वीरसेनस्वामीके शिष्य थे। आचार्य जिनसेन (द्वितीय) भी भगवान वीरसेन स्वामीके शिष्य थे। अतः आचार्य दशरथजी आचार्य वीरसेनजीके द्वितीय शिष्य रहे हों। भगवान गुणभद्राचार्यने आपको गुरु माना होनेसे प्रतीत होता है, कि आप भगवान आचार्य गुणभद्रजीके विद्यागुरु रहे हों।
आपने कोई ग्रंथ लिखा हो ऐसा नहीं मिलता; परंतु आचार्य गुणभद्रजीके विद्यागुरु होनेसे व आचार्य वीरसेनस्वामीके शिष्य होनेसे आप सिद्धान्तोंके व प्रथमानुयोगके ज्ञाता होंगे, यह अवश्य है।
इतिहासकार आपका काल ई.स. ८२०-८७० निर्णित करते हैं। आचार्य दशरथस्वामीको कोटि कोटि वंदन।
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