Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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જયદેન
राजदरबारमें राजा अमोघवर्ष द्वारा सम्मानित आचार्य जिनसेनजी(द्वितीय)
आपके व्यक्तित्वके बारेमें शिलालेख भी उपलब्ध है, जो आपके कालमें आपकी धवलकीर्तिकी ध्वजा फहराते हैं। बालब्रह्मचारी ऐसे आपने कठोर ब्रह्मचर्यकी साधना की थी। अतः जिससे वाग्देवी आप पर अत्यंत प्रसन्न थी।
आपका शरीर कृश था, आकृति भी भव्य और रम्य नहीं थी। इस भांति बाह्य व्यक्तित्वके मनोरम न होने पर भी, आत्मज्ञानकी प्रचुरतासे तपश्चरण, ज्ञानाराधन एवं कुशाग्र आराधक बुद्धिके कारण आपका अंतरंग व्यक्तित्व बहुत ही भव्य था। आप ज्ञान व अध्यात्मके अवतार थे। आपका जन्म किस जाति-कुलको प्राप्त हुआ, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है।
आप काव्य, व्याकरण, नाटक, दर्शन, अलंकार, आचार, कर्मसिद्धान्त प्रभृति आदि अनेक गहन विषयोंके विद्वान थे। आपकी केवल तीन ही रचनाएँ उपलब्ध है। 'वर्धमानचरित' भी आपकी ही रचना होनेकी सूचना प्राप्त होती है, पर यह कृति अभी तक देखनेमें नहीं आयी है। आपकी निम्न तीन रचनाएँ हैं व उनका रचनाक्रम निम्नानुसार है। १. पार्श्वभ्युदय, २. जयधवला टीका, ३. आदिपुराण(सर्ग-४२ तक)।
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