Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री वज्रसूरि अपरनाम
वज्रनन्दि
आचार्य वज्रसूरि, आचार्य देवनन्दि- .
पूज्यपादके शिष्य वज्रनन्दि जान पड़ते हैं। ध्यानस्थ आचार्य वज्रसूरिजी हरिवंशपुराणमें आपके सम्बन्धमें कहा है
वरसूरेविचारिण्य सहेत्वोर्बन्धमोक्षयोः।
प्रमाणं धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः॥
अर्थ :-जो हेतु सहित बन्ध और मोक्षका विचार करनेवाली हैं, ऐसी श्री वज्रसूरिकी MO उक्तियाँ धर्मशास्त्रोंका व्याख्यान करनेवाले गणधरोंकी उक्तियोंके समान प्रमाणरूप हैं।
इस कथनसे यह ध्वनित होता है, कि वज्रसूरि प्रसिद्ध सिद्धान्तशास्त्रके वेत्ता हुए। HD हैं। आपके वाक्य गणधरोंके वाक्योंके समान माने जाते हैं। अपभ्रंश भाषाके कवि धवलने - अपने हरिवंश पुराणमें लिखा है—वजसूरि सुपसिद्धउ मुणिवरु, जेण पमाणगंथु किउ चंग॥ ७
अर्थात् वज्रसूरि नामके प्रसिद्ध मुनिवर हुए, जिन्होंने सुन्दर प्रमाणग्रन्थ बनाया। tophy PRO आचार्य जिनसेन और कवि धवल, दोनोंने ही वज्रसूरिका उल्लेख पूज्यपादस्वामीके पश्चात्
किया है। अतएव ये वही वज्रनन्दि मालूम होते हैं, जो पूज्यपादके शिष्य थे। जिन्हें आचार्य देवसेनसूरिने अपने दर्शनसारमें द्राविडसंघका बतलाया है; परंतु उस द्रविडसंघसे आप भिन्न
प्रतीत होते हैं, क्योंकि वह द्रविड़ संघ भगवान पूज्यपादस्वामीजीके काफ़ी समयके बाद चला * था। 'नवस्तोत्र' के अतिरिक्त इनका कोई प्रमाणग्रन्थ भी था। आचार्य जिनसेनजीके उल्लेखसे o आपका कोई सिद्धान्तग्रंथ होनेकी भी सम्भावना की जा सकती है।
आपका अपरनाम वज्रनन्दि था। आपका समय ईस. ४४२-४६४ ही प्रतीत होता है। आचार्यदेव श्रीवज्रसूरि भगवंतको कोटि कोटि वंदन ।
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