Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव
श्री अकलंक भट्ट जैन साहित्यके अद्वितीय कार्य करनेके पश्चात् भी प्रसिद्धिसे दूर रहते हुए, निज आत्माकी आराधनामें निरत रहते, जैन न्यायशास्त्रके सूर्यरूप भट्ट अकलंकदेवको कोई भी जैन, स्मरण किए बिना नहीं रहता।
वैसे तो भगवान समन्तभद्राचार्यदेव जैन न्यायके संस्थापकरूपमें अति प्रसिद्ध हैं। फिर भी अकलंकदेव भी उसी भांति जैन न्यायके संस्थापकरूपमें बहुत प्रसिद्ध हैं। आपके पश्चात्वर्ती उच्चकोटिके आचार्यवर अनन्तवीर्य, विद्यानन्दि आचार्य, वादिराज आचार्य तथा प्रभाचन्द्र आचार्य जैसे जैन वाङ्मयके न्याय विषयक ग्रंथोंके रचयिता प्रकाट्य विद्वद्वोंने भी आपकी भूरी-भूरी प्रशंसा सह आपको स्मरण किया है। इतना ही नहीं, आपके गूढ़ न्यायोंके भाव खोलनेमें स्वयंकी असमर्थता भी प्रदर्शित की है।
आपके बारेमें विविध ग्रंथोंमें विविध कथानक मिलते हैं, उनमेंसे कतिपय उल्लेख निम्न प्रकार हैं, जिससे आपके संबंधमें कुछ-कुछ प्रकाश पड़ता है। जैसे :
(१) आराधनाकथाकोषमें बताया है, कि 'मान्यखेटके राजा शुभतुंग थे। उनके मंत्रीका नाम पुरुषोत्तम था। पद्मावती उनकी पत्नी थी। पद्मावतीके गर्भसे दो पुत्र उत्पन्न हुएअकलंक और निष्कलंक।
(२) आचार्यदेव प्रभाचन्द्रके शब्दकोषमें आपकी कथा देते हुए लिखा है, कि एकबार अष्टाह्निका पर्वके अवसरपर आपके माता-पिता अपने पुत्र अकलंक और निष्कलंक सहित मुनिराजके पास दर्शन करने गये। धर्मोपदेश श्रवण करनेके पश्चात् उन्होंने आठ दिनोंके लिए ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया और पुत्रोंको भी ब्रह्मचर्यव्रत दिलाया। जब दोनों भाई वयस्क हुए
और माता-पिताने उनका विवाह करना चाहा, तो उन्होंने मुनिके समक्ष ली गई प्रतिज्ञा याद दिलायी और विवाह करनेसे इन्कार कर दिया। पिताने पुत्रोंको समझाते हुए कहा, कि 'वह व्रत तो केवल आठ दिनोंके लिये ही ग्रहण किया गया था। अतः विवाह करने में कोई भी रुकावट नहीं है।' पिताके उक्त वचनोंको सुनकर पुत्रोंने उत्तर दिया- 'उस समय,
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