Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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समय-सीमाका जिक्र नहीं किया गया था । अतः ली गयी प्रतिज्ञा तोड़ी नहीं जा सकती।'
पिताने पुनः कहा— 'वत्स ! तुम लोग उस समय अबुध थे । अतः ली गयी प्रतिज्ञा समय-सीमाका ध्यान नहीं रखा। वहाँ लिए गए व्रतका आशय केवल आठ दिनोंके लिये ही था, जीवन-पर्यन्तके लिये नहीं । अतएव विवाह कर तुम्हें हमारी इच्छाओंको पूर्ण करना चाहिए।'
पुत्र बोले- 'पिताजी! एक बार ली गयी प्रतिज्ञा तोड़ी नहीं जा सकती । अतः यह व्रत तो जीवन पर्यन्तके लिये है। विवाह करनेका अब प्रश्न ही नहीं उठता।'
पुत्रोंकी दृढ़ताको देखकर माता-पिताको आश्चर्य हुआ। पर वे उनके अभ्युदयका ख्यालकर उनका विवाह करनेमें समर्थ न हुए । अकलंक और निष्कलंक ब्रह्मचर्य से साधना करते हुए विद्याध्ययन करने लगे ।
(३) आराधना कथाकोष अनुसार उस समय बौद्धधर्मका सर्वत्र प्रचार था व युवावस्था होनेपर पुत्रोंने विवाह करनेसे इन्कार कर दिया तथा वे दोनों भाई विद्याध्ययनमें संलग्न होने हेतु महाबोधि- विद्यालय में बौद्ध-शास्त्रोंका अध्ययन करने लगे । '
જયદેવ
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बौद्ध विद्यालय अकलंक व निकलंक ही मात्र जैनधर्मी हैं, ऐसा बौद्ध साधुओंको पता लगने पर उन्हें पकड़कर जेल में डालना ।
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