Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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आगम द्वारा इतना बड़ा ज्ञानी हो सकता है, तो अतीन्द्रियप्रत्यक्षज्ञानधारी सर्वज्ञ भगवान समस्त पदार्थोंके ज्ञाता हो, इसमें कौनसा आश्चर्य है !!
___३. यद्यपि आप केवली या श्रुतकेवली न होने पर भी आपकी द्वादशांगी आगम प्रज्ञाको देख विद्वत्वर्ग आपको 'श्रुतकेवली' व 'प्रज्ञाश्रमणोंमें श्रेष्ठ' तक मानते थे और मानते हैं। आपकी प्रज्ञाशक्तिका दर्शन आपकी टीकाओंमें पद-पद पर होता है।
४. आप भट्टारक उपमारूप पदवीको प्राप्त केवलीके समान सभी विद्याओंके पारगामी
५. आपने अपनी टीकामें जिन-जिन विषयोंकी जो स्पष्टता की है, उसका खण्डन कोई नहीं कर सकता है।
६. जरूरत हुई तो स्पष्टता करते हुए आपने लिखा है, कि 'केवली और श्रुतकेवलीके न रहनेके कारण उपलब्ध सूत्रोंमें कौनसा सूत्र आवश्यक है और कौनसा आवश्यक नहीं, इसका निर्णय करना सम्भव नहीं है। अतएव सूत्रकी अशातनाके भयसे दोनों ही सूत्रोंकी व्याख्या करना आवश्यक है। हमने तो गौतमस्वामी द्वारा प्रतिपादित अभिप्रायका कथन किया है।' इसी भाँति ऐसा भी आपने लिखा है, कि 'यदि ऐसा है, तो यह सूत्र है और यह सूत्र नहीं है, इसका कथन उपदेश पाकर वे करें कि, जो आगममें निपुण हैं। हम इस प्रसंगमें कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि इसके सम्बन्धमें हमें उपदेश प्राप्त नहीं है।
पंचस्तूप संघके अन्वयमें आप आचार्य आर्यनन्दीके शिष्य थे व आपके दादागुरु आचार्य चन्द्रसेन थे। आपके विद्यागुरु भगवान एलाचार्य थे। एलाचार्यदेवके पास ही वीरसेनस्वामीने सिद्धांत शिक्षाको ग्रहण किया था। आप स्वयं आचार्य जिनसेन (द्वितीय)के गुरु थे।
चित्रकूट (चित्तौड़) निवासी भगवान एलाचार्यके पास सिद्धान्तग्रंथोंका अभ्यास करनेके पश्चात् आप वटग्राम (वड़ोदरा) पधारे। वहाँके 'आनतेन्द्र द्वारा बनवाए हुए जिनालयमें आपने बप्पदेव रचित षखंडागम व कसायपाहुड़की व्याख्या देखी, जिससे प्रेरित होकर व अपने विद्यागुरुके आदेशको शिरोधार्य करके आपने प्रथम षट्खंडागमकी प्राकृत व संस्कृत मिश्रित धवला टीका पूर्ण की। पश्चात् कसायपाहुड़की टीका-जयधवलाका प्रारंभ किया। उसमें प्रथम करीब २०००० श्लोक प्रमाण रचनाके पश्चात् आप समाधिस्थ हुए। कहा जाता है, कि
१. वड़के पेड़की आधिक्यता देख, जिसे वट्टपुरी (वड़ोदरा) कहा जाता था। वह वड़ोदरा नगर उस
समय पावागढ तक फैला हुआ था व आनतेन्द्र द्वारा बनवाए हुए जिनालय पावागढ़में काफी थे।
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