Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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જયદેવ
भगवान आचार्य श्री अनन्तकीर्तिजी
दर्शन साहित्यके ज्ञाता कई अनन्तकीर्ति आचार्योंमें आप अपने में अनुठे हैं। आपने 'बृहत्सर्वज्ञसिद्धि' व 'लघुसर्वज्ञसिद्धि' नामक दो ग्रंथोकी रचना करके, दिगम्बर जैन साहित्य में अपनी अमीट सुगँधको महकाकर जैन जगतमें आप अमर वरदानरूप हुए हैं।
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आप अपने युगके प्रख्यात तार्किक विद्वान आचार्य थे। आपने स्वप्नज्ञानको मानस प्रत्यक्ष ज्ञान माना है।
आपके ग्रंथमें सन्मतितर्कके टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि व आचार्य विद्यानन्दस्वामीकी छाप स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है। आपकी महिमा
ध्यानस्थ आचार्य अनन्तकीर्तिजी
आपके पश्चात्वर्ती आचार्य वादिराजने भी गाई है।
विद्वानोंके मतानुसार आप भगवान आचार्य विद्यानंदीजीके समवर्ती प्रतीत होते हैं । आपके समय के बारेमें विविध विद्वान अलग-अलग मत रखते हैं, फिर भी आप ईसाकी ८वीं शताब्दी के उत्तरार्धवर्ती आचार्य हैं, ऐसा आपका समय माननेमें कोई दो मत नहीं है । 'सर्वज्ञकी सिद्धि करनेमें निपुण' आचार्य अनंतकीर्तिदस्वामीको कोटि कोटि वंदन |