Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री जटासिंहनन्दि अपरनाम जटाचार्य
ज्ञानानन्दस्वभावकी मस्तीकी प्रचुरतामें रत्नत्रयमयरसके भोजी, दक्षिणदेशके प्राचीन आचार्य जटासिंहनंदिकी मुख्यरूपसे एक ही सुंदर रचना 'वराङ्गचरित्र' नामसे प्रसिद्ध है।
____ आप इतने प्रसिद्ध थे, कि जैनाचार्य ही नहीं, परन्तु अन्यमतके विद्वानोंने भी आपको गौरवसे स्मरण किया है। जैनाचार्यमें हरिवंशपुराणके रचयिता आचार्यदेव जिनसेनस्वामी (प्रथम) व आदिपुराणके रचयिता आचार्यदेव जिनसेन (द्वितीय)ने बहुत ही सन्मानसे 'वराङ्गचरित्र'को व आपको अर्थात् जटासिंहनन्दि आचार्यको सन्मानित किया है।
ख्याति, कुल, जाति, कुटुम्बादिसे अति निस्पृह रहते जैनाचार्योंकी यह विशेषता, उनके प्रत्येक ग्रंथोंमें झलकती है, कि वे हमेशा इस बारेमें मौन रहते हैं। मात्र आपकी ख्याति ही आपके पश्चात्वर्ती आचार्योंके ग्रंथोंमें झलकती है, उससे ही आपके संबंधमें यत्किंचित् जाना जाता है। उसी तरह भगवान
श्री जटासिंहनन्दीके बारेमें कहें तो कोई कायोत्सर्गधारी आचार्य जटामिंटनन्दीजी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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