Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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मुनिपुंगव वादीभसिंह
जिनाम्नायमें वादीभसिंह उपनाम धारक दो धर्मात्मा हुए हैं । (१) ओड़यदेव ( ई. सन्की आठवीं-नौवीं शताब्दी) व (२) अजितसेन ई. सन्की ११वीं शताब्दी । उनमें से हिन्दी साहित्यके 'बाणकवि' के समान जैन संस्कृत - गद्य साहित्य में प्रथम वादीभसिंहका स्थान है। जब कि दूसरे वादीभसिंह तो अजितसेन वादीभसिंह दार्शनिक विद्वान थे ।
ध्यानस्थ मुनिपुंगव वादिभसिंहजी
आपके द्वारा रचित 'गद्यचिन्तामणि' ऐसा ग्रन्थ है, वह मानों ' कादम्बरी' की प्रतिस्पर्धा करता हो, ऐसे काव्यरसके भावोंसे भरपूर है ।
आचार्य अकलंकदेवके गुरुभाई दिगम्बर आचार्य पुष्पसेनके आप शिष्य थे। आचार्य पुष्पसेन आपके काव्यगुरु व दीक्षागुरु थे। आपको अपने गुरु प्रतापसे मुनिपुंगवता प्राप्त हुई
थी।
आप कलिंगके गंजाम जिलेके आस-पासके निवासी थे, ऐसा इतिहासकारोंका मानना है, क्योंकि गंजाम जिला मद्रासके उत्तरमें उड़ीसामें सम्मिलित है । वहाँ पर ओड़ेय और मोड़ेय दो जातियाँ निवास करती हैं। सम्भवतः आप ओड़ेय जातिके हों ।
दूसरा आपने गद्यचिन्तामणिमें जीवन्धर स्वामीकी कथा लिखी है और गंजाम जिलेमें प्रचलित लोक-कथाओंमें जीवन्धरचरित आज भी उपलब्ध होता है।
आप वही वादीभसिंह है, जिन्हें आचार्य जिनसेन व आचार्य वादिराजने 'वादिसिंह ' उल्लिखित किया है।
आपकी दो रचनाएँ है : (१) क्षत्रचूडामणि व (२) गद्यचिन्तामणि । ' स्याद्वासिद्धि' भी आपकी रचना बताई जाती है ।
आप ईस्वीकी ७७०-८६०के आचार्य थे।
मुनिपुंगव वादीभसिंह भगवंतको कोटि कोटि वंदन ।
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2006
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