Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री काणभिक्षु
आचार्य जिनसेनजीने १ आचार्य काणभिक्षुका कथा-ग्रन्थ रचयिताके रूपमें उल्लेख किया Gal है। इससे ज्ञात होता है, किom आपका कोई प्रथमानुयोग सम्बन्धी ग्रन्थ रहा है। आचार्य MC
जिनसेनजीने लिखा हैदीक्षा देते आचार्य काणभिक्षु
धर्मसूत्रानुगा हृद्या यस्य वाङ्मणयोऽमलाः।
कथालङ्कारतां भेजुः काणभिक्षुर्जयत्यसौ॥ अर्थात् वे काणभिक्षु जयवन्त हों, जिनके धर्मरूप सूत्रमें पिरोये हुए, मनोहर वचनरूप - निर्मलमणि कथाशास्त्रके अलङ्कारपनेको प्राप्त हुए थे अर्थात् जिनके द्वारा रचे गये कथाग्रन्थ ७, श्रेष्ठ थे। आपने एक चारित्रग्रंथ लिखा हो ऐसा भी मानना है।
आपका कोई कथा-ग्रंथ वर्तमानमें उपलब्ध हो—ऐसा ज्ञात नहीं होता। ये आचार्य जिनसेनजी द्वारा उल्लिखित होनेसे, आप उनसे पूर्ववर्ती विद्वान थे। वे ईसुकी ८वीं शताब्दी मध्यपादके आचार्य थे। आचार्यदेव काणभिक्षु भगवंतको कोटि कोटि वंदन ।
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