Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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एक दिन गुरुमहोदय शिष्योंको सप्तभंगी समझा रहे थे, पर पाठ अशुद्ध होनेके कारण वे उसे ठीक नहीं समझा सके। गुरुके कहीं चले जाने पर, अकलंकने उस पाठको शुद्ध कर दिया। इससे गुरुमहोदयको शिष्योंमें कोई शिष्य जैन होनेका सन्देह हुआ। कुछ दिनों में उन्होंने अपने प्रयत्नों द्वारा उनको जैन प्रमाणित कर लिया। दोनों भाई कारागृहमें बन्द कर दिए गए। रात्रिके समय दोनों भाईयोंने कारागृहसे निकल जानेका प्रयत्न किया। वे अपने प्रयत्नमें सफल भी हुए और कारागृहसे निकल भागे । प्रातःकाल ही बौद्ध गुरुको उनके भाग जानेका पता चला। उन्होंने चारों ओर घुड़सवारोंको दौड़ाकर दोनों भाईयोंको पकड़ लानेका आदेश दिया।
घुड़सवारोंने उनका पीछा किया। कुछ दूर आगे चलने पर दोनों भाईयोंने अपने पीछे आनेवाले घुड़सवारोंको देखा और अपने प्राणोंकी रक्षा न होते देख अकलंक निकटके एक तालाब में कूद पड़े और कमलपत्रोंसे अपने आपको आच्छादित कर लिया । निष्कलंक भी प्राणरक्षाके लिए शीघ्रतासे भाग रहे थे। उन्हें भागता देख तालाबका एक धोबी भी भयभीत होकर साथ-साथ भागने लगा । घुड़सवार निकट आ चुके थे। उन्होंने दोनोंको शीघ्रता से पकड़ लिया और उनका वध कर डाला । घुड़सवारोंके चले जाने पर, अकलंक तालाब से निकल निष्कलंक और निर्दोष धोबीको मरा देख दुःखित हो भ्रमण करने लगे ।
(४) कलिंग देशके रतनसंचयपुरका राजा हिमशीतल था। उनकी रानी मदनसुंदरी जिनधर्मकी भक्त थी। वह बड़े उत्साहके साथ जैनरथ निकालना चाहती थी । किन्तु बौद्ध गुरु जैन रथ निकलने देनेके पक्षमें नहीं थे। उनका कहना था, कि कोई भी जैन विद्वान जब तक मुझे शास्त्रार्थमें पराजित नहीं कर देगा, तब तक जैन रथ नहीं निकाला जा सकता है । गुरुके विरुद्ध राजा कुछ नहीं कर सकता था। बड़े धर्मसंकटका समय उपस्थित था । जब अकलंकदेवको यह समाचार मिले, तो वे' राजा हिमशीतलकी सभामें गये और बौद्ध गुरुको शास्त्रार्थ करने को कहा। अकलंकदेव बाहर व बौद्धगुरु परदेके अन्दर रहकर दोनोंके बीच कुछ समय तक शास्त्रार्थ होता रहा। अकलंकदेवको इस शास्त्रार्थसे बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने इसका रहस्य जानना चाहा। उन्हें शीघ्र ज्ञात हो गया, कि बौद्ध गुरुके स्थान पर, परदेके अन्दर घड़े में बैठी बौद्धदेवी 'तारा' शास्त्रार्थ कर रही है। उन्होंने परदेको खोलकर घड़ेको फोड़ डाला। ‘तारा देवी भाग गयी और बौद्धगुरु पराजित हुए। खूब धामघूमसे जैनरथ निकाला गया और जैनधर्मका महत्त्व प्रकट हुआ ।
१. पाठान्तर : कुछ इतिहासकारोंनें श्री अकलंकदेवको मुनिलिंगमें हिमशीतलकी सभा में चर्चा करते हुए दिखाया है ।
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