Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यवर श्री जोईन्दु अपरनाम योगीन्दु
सनातन जिनशासनमें हुए अत्यंत विरक्त चित्त जोईन्दु या योगीन्दु एक आध्यात्मिकवेत्ता आचार्य थे। उनके जीवन-वृत्तके बारेमें न तो आपके ग्रंथों से कोई सामग्री उपलब्ध होती है और न ही अन्य वाङ्मयसे। फिर भी आप दिगम्बर आचार्य होनेके पूर्वमें वैदिक मतानुसारी रहे होंगे, क्योंकि आपकी कथनशैलीमें वैदिक मान्यताके शब्द बहुलतासे आते हैं। तदुपरांत आपके ग्रंथ परमात्मप्रकाश व अन्य ग्रंथोंसे इतना स्पष्ट भासित होता है, कि जिन वाङ्मयमें आपको जोइन्दु, योगीन्दु, जोगीचन्द्र, योगीचन्द्र आदि विविध नामोंसे पुकारा गया है, परन्तु विद्वानोंके मतानुसार आपका नाम 'जोइन्दु' या 'योगीन्दु' ही था, बाकी सभी 'जोइन्दु'के भाषानुवादका ही फ़रक है।
आपके शिष्यका नाम प्रभाकर भट्ट था, ऐसा परमात्मप्रकाश ग्रंथ परसे प्रतीत होता है। आपके परमात्मप्रकाश व योगसारके विषयानुसार आप कविके ब-निस्बत अध्यात्मरसिक अधिक थे, ऐसा प्रतीत होता है, क्योंकि आपने उक्त दोनों ग्रंथोंमें अध्यात्मतत्त्वको सुंदर, गहन व गूढतया भर दिया है। आपका अपभ्रंश भाषा पर अपूर्व अधिकार था।आपके ग्रंथोंसे यह भी पता चलता है, कि आप क्रांतिकारी विचारधाराके प्रवर्तक थे, क्योंकि आप अध्यात्मको जलद शब्दोंमें इस तरह रखते, कि सुनते ही एकबार सुननेवालेका मोह, (मिथ्या मान्यता) तो हिल ही जाए। इसलिए ही विद्वानोंका मानना है, कि जैसे 'कबीर'ने अन्यमतमें जिस क्रान्तिकारी विचारधाराकी प्रतिष्ठा की है, उसका मूल स्रोत आपकी रचनामें पाया जाता है। आपकी लेखन शैलीमें आपने भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव व पूज्यपादस्वामीका बहुत ही अनुसरण किया है, ऐसा प्रतीत हुए बिना नहीं रहता।
आपने अपभ्रंश व संस्कृतके अनेक ग्रंथ रचे है, उनमेंसे निम्न विशेष प्रसिद्ध हैं। १. स्वानुभवदर्पण, २. परमात्मप्रकाश, ३. योगसार, ४. दोहापाहुड, ५. सुभाषिततन्त्र, ६. अध्यात्मरत्नसंदोह, ७. तत्त्वार्थ टीका, ८. अमृताशीति व निजात्माष्टक, १०. नौकार श्रावकाचार। इन ग्रंथोंमें परमात्मप्रकाश व योगसारके अलावा बाकी सभी इन्हीं आचार्य जोइन्दुदेवकी रचना है, या अन्य योगीन्दुकी—यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता।
भगवान श्री कुंदकुंदस्वामी व पूज्यपादस्वामीके पश्चात् अर्थात् ईसाकी छठवीं शताब्दीके उत्तरार्द्धमें आप होने चाहिए—ऐसा विद्वानोंका मत है। अध्यात्मरसिक आचार्यदेव श्री योगीन्दुदेवको कोटि कोटि वंदन।
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