Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव श्री पूज्यपादस्वामी अपरनाम देवनन्दि
भारतीय परम्परामें जो लब्धप्रतिष्ठित तत्त्वदृष्टा, शास्त्रकार हुए हैं, उनमें आचार्य पूज्यपादका नाम प्रमुखरूपसे लिया जाता है। इन्हें प्रतिभा और विद्वत्ता दोनोंका समानरूपसे वरदान प्राप्त था। जैन परम्परामें आचार्य समन्तभद्र और सन्मतिके कर्ता आचार्य सिद्धसेनके बाद साहित्यिक जगत्में यदि किसीको उच्चपद पर बिठलाया जा सकता है, तो वे भगवान कुंदकुंदाचार्यवत् आचार्य पूज्यपाद हो सकते हैं। आपने अपने पीछे जो साहित्य छोड़ा है। उसका प्रभाव दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओंमें समानरूपसे दिखाई देता है। यही कारण है, कि उत्तरकालवर्ती प्रायः अधिकतर साहित्यकारों व इतिहास मर्मज्ञोंने आपकी महत्ता, विद्वत्ता और बहुज्ञता स्वीकार करते हुए आपके चरणोंमें श्रद्धाके सुमन अर्पित किये हैं।
शिलालेखों तथा दूसरे प्रमाणोंसे विदित होता है, कि गुरुके द्वारा दिया हुआ आपका दीक्षानाम 'देवनन्दि' था। बुद्धिकी प्रखरताके कारण इन्हें 'जिनेन्द्रबुद्धि' कहते थे और देवोंके द्वारा आपके चरण युगल पूजे गये थे। इसलिए आप 'पूज्यपाद' इस नामसे लोकमें प्रख्यात थे।
आचार्य पूज्यपाद मूलसंघके अन्तर्गत नन्दिसंघ बलात्कार गणके पट्टाधीश थे तथा अन्य प्रमाणोंसे यह भी विदित होता है, कि आपका गच्छ 'सरस्वती' इस नामसे प्रख्यात था। हमारे प्रसिद्ध आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ (उमास्वाति) इसी परम्पराके पूर्ववर्ती आचार्य थे। यह भी इससे विदित होता है।
___ 'कर्णाटक देशके कोले' नामक ग्रामके माधवभट्ट नामक ब्राह्मण और श्रीदेवी ब्राह्मणीसे पूज्यपादका जन्म हुआ। ज्योतिषियोंने बालकको त्रिलोकपूज्य बतलाया। इस कारणसे भी आपका नाम पूज्यपाद रखा गया, ऐसा इतिहासविदोंका मानना है। माधवभट्टने अपनी स्त्रीके कहनेसे जैनधर्म स्वीकार कर लिया। उनके सालेका नाम 'पाणिनी' था। उसे भी आपने ही जैन बननेको कहा। परन्तु प्रतिष्ठाके ख्यालसे वह जैन न होकर मुंडीकुंड ग्राममें वैष्णव संन्यासी हो गया। पूज्यपादस्वामीकी कमलिनी नामक छोटी बहन हुई, वह गुणभट्टको व्याही गयी और गुणभट्टको उससे नागार्जुन नामक पुत्र हुआ।
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