Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्यदेव
श्रीदत्तजी
आचार्यवर भगवान श्रीदत्तजी भावलिंगी मुनि धर्मात्मा, अपने आत्मामें मस्त रहते हुए महान दार्शनिक आचार्य थे। आप दार्शनिक ही नहीं, पर वाद विद्यामें भी पारंगत थे।
आचार्य विद्यानन्दजीने आपके ‘जल्पनिर्णय' ध्यानस्थ वादविजेता आचार्य श्रीदत्तजी व 'वादन्याय विचक्षण' ग्रन्थका उल्लेख करते हुए,
आपको ३६३ वादियोंको जीतनेवाला बताया है। इससे स्पष्ट है, कि आचार्यवर 'श्रीदत्त' बड़े तपस्वी और वादविजेता विद्वान थे। विक्रमकी - छठी शताब्दीके पूर्वार्धके विद्वान भगवान आचार्य देवनन्दी (पूज्यपाद)ने जैनेन्द्र व्याकरणमें -
आचार्यवर 'श्रीदत्त'जीका नामोल्लेख किया है। वैसा ही भगवान आचार्य जिनसेनजीने भी GO आपका नाम स्मरण किया है। इससे बहुत सम्भव है, कि आचार्य जिनसेन और देवनन्दी • द्वारा उल्लिखित आचार्यवर 'श्रीदत्त' एक ही आचार्य हो। आदिपुराणकारने चूँकि आचार्यवर
'श्रीदत्त'को तपःश्रीदीप्तमूर्ति और वादिरूपी गजोंका प्रभेदक बतलाया है, इससे भी आचार्यवर 'श्रीदत्त'जी दार्शनिक विद्वान जान पड़ते हैं। जैनेन्द्र व्याकरणमें जिन छह विद्वानोंका उल्लेख
किया है; उनमें केवल भूतबलि सिद्धान्तशास्त्रके मर्मज्ञ थे। उनके अलावा सभी दार्शनिक 9 विद्वान थे।
यद्यपि आपने स्वयंने 'जल्पनिर्णय' व 'वादन्याय'के अलावा कोई विशेष उल्लेखनीय शास्त्र नहीं लिखा है, फिर भी कई शताब्दी तक महान शास्त्र रचयिता आचार्य पूज्यपाद * स्वामी (अपरनाम देवनन्दी), अष्टसहस्रीके रचयिता आचार्यदेव विद्यानंदी, आदिपुराणके रचयिता - आचार्य जिनसेन (द्वितीय) जैसे महान आचार्योंने आपको बड़े पूज्यभावसे स्मरण किया है,
वह आपके अन्तरकी विशुद्ध परिणतिकी अतिशयताको ही सूचित करता है। goo/ आप ईसाकी चौथी शताब्दीके मध्यपादवर्ती आचार्यदेव थे।
आचार्यदेव श्रीदत्तस्वामीको कोटि कोटि वंदन।
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