Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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अनेकान्तिक ही है, इसके अलावा अन्य प्रकारसे हो ही नहीं सकता। यह सिद्ध करने में जो गंभीर व गहन न्याय दिए हैं, उसके भाव उन द्वारा रचित ग्रंथोंकी टीकासे ही अति स्पष्ट होते हैं। ऐसा पदार्थका स्वरूप समझनेसे ही आत्मकल्याणके मार्गमें, सम्यग्दर्शनके साथ ही, तत्त्वज्ञानकी आवश्यकता प्रद्योत होती है; वह चमत्कारिकरूपसे अपने ग्रंथोंके अन्तमें आपने बताया है।
जिनशासनके रहस्य-अनेकान्त-स्याद्वाद्-को हृदयङ्गम किया होनेसे आप जैनधर्मके मर्मज्ञ थे। आपको आपके समयके सारे दर्शनशास्त्रोंका तलस्पर्शी ज्ञान था, उसी द्वारा आपने उन दर्शनोंकी मध्यस्थता पूर्ण परीक्षा ही नहीं, समीक्षा भी की थी।
आपके पश्चात्वर्ती आचार्योंने आपके विविध गुणोंकी प्रशंसा की है। उसमेंसे कुछेक जैसे कि श्री 'आदिपुराण में आचार्यदेव जिनसेनजीने आपको ‘महान कविवेत्ता' कहकर, श्री वादिराजसूरिजीने आपको 'काव्यमणियोंका पर्वत' कहकर, श्री वादिभसिंह आचार्यने आपको 'स्याद्वादकी स्वच्छंद-विहारभूमि' कहकर, श्री वर्धमानसूरिने आपको 'महान् कविश्वर, कुवादिविद्या-जय-लब्ध-कीर्ति' और 'सुतर्कशास्त्रामृतसारसागर' कहकर आपके गुणोंकी भूरिभूरि प्रशंसा की है। उस ही भांति श्री शुभचंद्राचार्यदेव, भट्टारक सकलकीर्तिजी, ब्रह्म अजितजी, कवि दामोदर, श्री वसुनन्दी आचार्य, श्री विजयवर्णीने, श्री अजितसेनाचार्यने भी आपकी प्रशंसा की है। उस ही भांति अनेक शिलालेखोंमें भी आपके विविध गुण-रत्नोंकी स्तुति की है। इस परसे संक्षिप्तमें कहें तो आपके परिचयविषयक विशेषण जो उपलब्ध हुए हैं, वे—(१) आचार्य, (२) कवि, (३) वादीराज, (४) पण्डित (गमक), (५) दैवेज्ञ(ज्योतिर्विद), (६) भीषक् वैद्य), (७) मान्त्रिक(मन्त्रविशेषज्ञ), (८) तान्त्रिक(तन्त्र विशेषज्ञ), (९) आज्ञासिद्ध, (१०) सिद्ध सारस्वत(सरस्वती जिन्हें सिद्ध है।) ऐसे अनेक विशेषण हैं।
आप सफल परीक्षक होनेसे आपने सर्वज्ञ, वीतराग आप्त प्रभु तककी परीक्षा की। इतना ही नहीं, आप मानो वाद देवता हों, उस तरह आपने विविध स्थान पर बड़े नम्रतासे (आडम्बर रहितरूपसे) वादीयोंको अनेकान्त-स्यावाद विद्या द्वारा मन्त्र-मुग्ध कर वीर प्रभुके शासनको सहस्रगुणा वृद्धिगंत किया था। उसमेंसे पाटलीपुत्र नगर, मालव(मालवा), सिन्धु, ठक्क(पंजाब) देश, कांचीपुर (कांजीवरम्) और वैदिश (भेलसा) आदि प्रमुख हैं, अर्थात् आप भारतके पूर्वसे पश्चिम व उत्तरसे दक्षिणके सभी प्रमुख-प्रमुख स्थानों पर वादमें अग्रेसर सिद्ध हुए-ऐसा इतिहासकारोंका मानना है।
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