Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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ये तीनों ही सूत्र आचार्य कुंदकुंद भगवान प्रणीत ग्रंथोंसे लिये हुए है अतः सीधे आप आचार्य कुंदकुंद भगवन्के शिष्य यथार्थतया प्रतीत होते हैं। आप बड़े विद्वान व वाचक आचार्य थे।
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीकामें इस भाँतिका लिखा मिलता है, कि “भगवान उमास्वामीसे द्विपायन नामा भव्यने पूछा-'भगवन् ! आत्माके लिए हितकारी क्या है ? भव्य द्वारा ऐसा प्रश्न करनेपर आचार्यवर्यने मंगलपूर्वक उत्तर दिया, 'मोक्ष'। यह सुनकर द्विपायनने पुनः पूछा-'उसका स्वरूप क्या है, और उसकी प्राप्तिका उपाय क्या है' ? उत्तरस्वरूप आचार्यवर्यने कहा, कि 'यद्यपि प्रवादिजन इसे अन्यथा प्रकारसे मानते हैं, जैसे कोई श्रद्धानमात्रको मोक्षमार्ग मानते हैं, कोई ज्ञाननिरपेक्ष श्रद्धान व चारित्रको मोक्षमार्ग मानते हैं, परंतु जिस प्रकार औषधीके केवल ज्ञान, केवल श्रद्धान या केवल प्रयोगसे रोगकी निवृत्ति नहीं हो सकती है, उसी प्रकार केवल श्रद्धान, केवल ज्ञान या केवल चारित्रसे मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती। भव्यने पूछा तो फिर किस प्रकार उसकी प्राप्ति होती है? इसीके उत्तरस्वरूप आचार्यने “सम्यगदर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः” यह सूत्र रचा है और इसके पश्चात् अन्य सूत्रोंकी रचना हुई है।
ऐसा ही कुछ आचार्यवर पूज्यपादस्वामीजीने अपनी टीका 'सर्वार्थसिद्धि' में लिखा है, कि यह ग्रंथ आसन्नभव्यके प्रश्नके उत्तरमें रचा गया है' व प्रश्न 'मोक्ष' संबंधित होनेसे व मोक्षमार्गका उसमें वर्णन होनेसे, इस ग्रंथका नाम 'मोक्षशास्त्र' भी प्रसिद्ध है।
___ इस ग्रंथके बारेमें विविध स्थानों पर विविधरूपेण ऐसी ही कुछ जनश्रुति आती है, वह इस प्रकार है कि सौराष्ट्रदेशमें द्विपायन नामक एक श्रावक रहता था। उसने एक बार मोक्षमार्ग विषयक कोई शास्त्र बनानेका विचार किया और 'एक सूत्र रोज बनाकर ही भोजन करूँगा अन्यथा उपवास करूँगा'; ऐसा संकल्प लिया। उसी दिन उसने एक सूत्र बनाया 'दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः'। विस्मरण होनेके भयसे उसने यह सूत्र घरके स्तम्भ पर लिख लिया। अगले दिन किसी कार्यवश वह बाहर चला गया और उसके घर एक मुनिराज आहारार्थ पधारे। लौटते समय मुनिकी दृष्टि स्तम्भ पर लिखे सूत्रपर पड़ी। उन्होंने चुपचाप 'सम्यक्' शब्द उस सूत्रके पहले लिख दिया और बिना किसीको कुछ कहे अपने स्थानको चले गए। श्रावकने लौटने पर सूत्रमें किए गए सुधारको देखा अपनी भूल स्वीकार की। उन मुनिको खोजकर उनसे ही विनयपूर्वक प्रार्थना की, कि वे इस ग्रन्थकी रचना करें, क्योंकि उसमें स्वयं पूरा करनेकी योग्यता नहीं थी। बस उसकी प्रेरणासे ही मुनिराजने 'तत्त्वार्थ सूत्र' (मोक्षशास्त्र)की १० अध्यायोंमें रचना की। वे मुनिराज उमास्वामीके अतिरिक्त अन्य कोई न थे।
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