Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
भगवान आचार्य बप्पदेव सिद्धान्त ग्रंथोंके ज्ञाता भगवान आचार्य बप्पदेव अपने समयके जाने माने आचार्य थे। शुभनंदि, रविनंदि व बप्पदेव आदिके नाम श्रुतधराचार्योंमें आते हैं। भगवान आचार्य शुभनन्दि और रविनन्दि नामके दो आचार्य अत्यन्त कुशाग्रबुद्धिके हुए हैं। इनसे आचार्य बप्पदेवने समस्त सिद्धान्तग्रन्थका अध्ययन किया।
आचार्य बप्पदेवने वेलगाँव जिलेके अन्तर्गत उत्कलिका नगरीके समीप 'मगणवल्ली' ग्राममें उक्त दोनों गुरुवर्योसे सिद्धान्तका अध्ययन किया था। इस अध्ययनके पश्चात् आपने महाबन्धको छोड़ शेष पाँच खण्डोंपर व्याख्याप्रज्ञप्ति नामकी टीका लिखी और छठे खण्डकी संक्षिप्त विवृत्ति भी लिखी। इन छहों खण्डोंके पूर्ण हो जानेके पश्चात् आपने कसायप्राभृतकी एक उच्चारणा टीका भी रची।
इस भांति षट्खण्डोंमेंसे महाबन्धको पृथक् कर शेष पाँच खण्डोंकी 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' नामक षखंड पर टीका भगवान आचार्यदेव बप्पदेवने लिखी। वीरसेन स्वामीने वट्टगाँव (बड़ौदा)में उक्त षट्खण्डोंमेंसे व्याख्याप्रज्ञप्तिको प्राप्त कर, उससे प्रेरित हो, सत्कर्म नामक छठे खण्डको मिलाकर छः खण्डोंपर धवला टीका लिखी। धवलाके अध्ययनसे ऐसा ज्ञात होता है, कि व्याख्याप्रज्ञप्ति प्राकृतभाषारूप पुरातन व्याख्या रही है। इस भांति आचार्य बप्पदेव सिद्धान्तविषयके मर्मज्ञ थे।
आचार्यवर बप्पदेवकी व्याख्याप्रज्ञप्तिके अलावा अन्य कोई भी रचना उपलब्ध नहीं है। फिर भी धवला एवं जयधवलामें आपके नामसे जो उद्धरण आते हैं, उनसे आपके वैदुष्यपर प्रकाश पड़ता है। षट्खंडागममें आपका यत्र-तत्र उल्लेख है। अतएव आचार्यके रूपमें 'बप्पदेव' अत्यंत प्रतिष्ठित हैं।
आप ईसुकी प्रथम शताब्दीके मध्यपाद कालमें हुए आचार्यदेव हैं।
व्याख्याप्रज्ञप्ति रचयिता आचार्यदेव बप्पदेव भगवंतको कोटि कोटि वंदन । १ भागीरथी कृष्णानदीकी शाखा है और इनके बीचका प्रदेश बेलगाँव या धारवाड याने बेलगाँव जिला कहलाता है।
(68)