Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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જયદેવ
(सेटके यहाँ) मुनिराजके आहार पश्चात् ग्वाले द्वारा मुनिराजको ताडपत्र अर्पण
किसी एक दिन कोई महामुनिराज उस सेठके घर आहार हेतु पधारे थे । सेने मुनिभगवंतको नवधा भक्तिपूर्वक आहारदान देनेके पश्चात् मुनिराजने सेठको कुछ प्रयोजनभूत तत्त्वत्का उपदेश दिया। उस समय ग्वाला भी वहीं था । उसने मुनिभगवंतका बडी श्रद्धा आहारदान देखा । उपदेश सुना । तब उस ग्वालेने अपने घरमें विराजित ताड़पत्रोंको लाकर मुनिभगवंत को दिये और कहा, 'भगवन्! मैं इसे नहीं पढ़ सकता, आप इसे पढ़ सकेंगे, ऐसा कहकर सारा वृतांत सुनाया । '
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सेठके यहाँ बालक (ग्वालेके जीव ) का जन्म । (ये ही हमारे कुंदकुंदाचार्य होंगे )
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ऐसे मुनिराज व जिनवाणीके प्रति बड़े आदर, श्रद्धावंतता फलस्वरूप वही ग्वाला दूसरे भवमें उसी सेटके यहाँ पुत्ररत्नके रूपमें जन्मा । वह ग्वाला और कोई नहीं, पर अपने महान आचार्यवर कुंदकुंदाचार्यदेव थे। पूर्वभवमें मुनिभगवंत तथा जिनवाणीकी श्रद्धाभक्तिके फलस्वरूप उन्हें श्रुतकी अपूर्व लब्धि प्राप्त हुई थी ।
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