Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान श्री आचार्यदेव स्वामी कार्तिकेय अपरनाम कुमारस्वामी
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कुमार नामके अनेक आचार्य, पंडित व कवि हुए हैं। जैसेःएक नागरशाखाके आचार्य कुमारनंदि, कि जिन्होंने मथुराके सारस्वत आन्दोलनमें ग्रंथ रचे थे। (ई.स. १ के आसपास) एक कुमारनन्दि आचार्य कुन्दकुन्दके शिक्षागुरुके रूपमें याद किया जाता है व उन्हें लोहाचार्य व माघनन्दिके आचार्योंके समकालीन अनुमानित किये जाते है। (ई.स. ४८ से ८७ के आसपास) एक वज्रनंदिके शिष्य तथा लोकचन्द्रके गुरु थे। (ई.स. ६८से ११८के बीचविविध गुर्वावली अनुसार) एक कुमारस्वामी अपरनाम कार्तिकेय आचार्य जो कि कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथके रचयिता गिने जाते है। (ई.स. १०९ से २००के मध्य) इस तरह विविधरूपसे आगममें इतिहासविदों द्वारा आपके अनेक नाम पाए जाते
___उनमेंसे यहाँ आचार्यकुमारस्वामी अपरनाम आचार्य कार्तिकेयस्वामीके बारेमें ही विचार किया जा रहा है। उनके संबंधमें वैसे तो निर्विवाद सामग्री उपलब्ध नहीं होती, फिर भी जितना कुछ आगमके आधारोंसे इतिहासविदोंने पाया है, वह इस प्रकार हैं।
____ आप अग्निनामक राजाके पुत्र थे। आप बालब्रह्मचारी थे; इसी कारणसे आपने 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' ग्रंथमें पंचबालयति तीर्थंकरोंको नमस्कार किया है। आपकी बहनका विवाह रोहेड़नगरके राजा कौञ्चके साथ हुआ था। आपने कुमारवस्थामें ही मुनि-दीक्षा धारण की थी, क्योंकि किसी कारणसे राजा क्रौञ्च कार्तिकेयसे असन्तुष्ट हो गये थे और उसने क्रौंच शक्ति कौञ्च पक्षी द्वारा आप पर दारुण उपसर्ग किया, जिसे निज आत्मप्रचुरतामय लीनता सह त्रिगुप्तभावसे सहन कर आप स्वर्गलोकको प्राप्त हुए। आपने चञ्चल मन व विषय
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