Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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भगवान आचार्य
शुभनंदि व आचार्य रविनंदि
निज आत्माकी महिमामें सराबोरपनसे अतीन्द्रिय आनंदमें झुलते मुनिवरोंको निज आत्माकी स्वाभाविक पूर्णदशाके अलावा और कुछ नहीं भाता । अतः ऐसे मुनिवरेन्द्रोंने अपने बारेमें कहीं भी कुछ नहीं लिखा। इतिहासकार आपके बारेमें या तो किवदन्तीयोंसे या आपके पश्चातवर्ती हुए आचार्योंने आपके बारेमें जो कुछ लिखा हो, उससे या आप द्वारा रचित अमूल्य धरोहररूप शास्त्रों द्वारा संशोधित करके परिचय देते हैं। आचार्य शुभनंदि व वीरनंदिके बारेमें ऐसा कुछ भी नहीं, कि जिनके आधारसे ऐसे श्रुतधर आचार्योंका जीवन जाना जा सके ।
मात्र धवला टीकाके आधारसे इतना ही मिलता है कि आप अत्यंत कुशाग्रबुद्धिवंत महान श्रुतधर आचार्यवर थे। आप दोनों ही सिद्धान्तग्रंथके ज्ञाता थे । अतः उसके अंतर्गत आप षट्खंडागमके भी ज्ञाता थे। आप आचार्य बप्पदेवके शिक्षागुरु थे। आप दोनों ही समकालीन थे। आपको सिद्धान्तग्रंथोका ज्ञान गुरुपरम्परासे प्राप्त हुआ था ।
आपसे ही सिद्धान्तग्रंथोंका अध्ययन करके भगवान आचार्यवर बप्पदेवजीने महाबन्धखण्डको छोड़कर पाँच खण्ड़ों पर 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' नामक टीका लिखी। तत्पश्चात् उन्होंने छट्टे खण्डकी टीका संक्षेपमें लिखी, बादमें कसायपाहुड पर भी टीका लिखी। जिसके आधार पर भगवान वीरसेनस्वामीने - धवला - जयधवला टीकामें आपको धवला - जयधवला टीकाके आद्यस्रोत माना है।
आप दोनोंने यद्यपि कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं रचा होने पर भी 'व्याख्या - प्रज्ञप्ति' के रचयिता आचार्य बप्पदेवके आप गुरु थे । धवला व जयधवला टीकाके आयस्रोत होनेसे, आपको धवलाकारने बहुत ही आदरसे स्मृत किया, जिससे आपके बारेमें यत्किंचित् जाना जाता है।
वंदन ।
इतिहासकारों अनुसार आप ईसुकी प्रथम शताब्दिके - मध्यपादवर्ती आचार्य थे। व्याख्याप्रज्ञप्तिके उपदेशक आचार्यदेव शुभनन्दि व रविनन्दि भगवंतको कोटि कोटि
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