Book Title: Bhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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જયદે
चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्तको मगधदेशका राजा बनाना निम्नस्तर पर चाणक्यके लिए आहारसुविधाका प्रबन्ध हुआ है-ऐसा चाणक्यको बताया। जब चाणक्यने कारण जानना चाहा, तब उसने झूठमूठ कहा कि 'यह राजा नन्दका आदेश' है। उस पर प्रतिशोधकी ज्वालामें जलता हुआ, वह नन्द राजाके महलसे 'राजाके नाशके' शब्द ज़ोरसे चिल्लाते हुए जा रहा था। उसी समय नन्द राजाका असंतुष्ट वीर योद्धा 'चन्द्रगुप्त' भी उनके साथ चल पड़ा। चाणक्यने वीरयोद्धा चन्द्रगुप्तमें राज्यशासन चलानेके गुण पाकर उसे राजनीति, अर्थशास्त्र आदि सभीका अल्पसमयमें ज्ञान दिया। उन दोनोंने मगधराज्यके सीमान्त प्रदेशोंके राजाओंको इकट्ठा कर नन्दवंशका नाश किया। अन्ततः चन्द्रगुप्तको मगधदेशका राजा बनाया।
चाणक्यने जब जाना, कि उसका लक्ष्य नन्दवंशका जड़मूलसे हटाना था, कि जो संपूर्ण हो गया है, तब उसने अपने आन्तरिक कषायभावोंको उपशांत कर स्वयंको अध्यात्मके ढाँचेमें ढाल दिया। अन्ततः चाणक्यने अपने ५०० शिष्यों सहित भगवती जिनदीक्षा ली व कठोर तपश्चर्या करते हुए पाटलीपुत्रसे 'वनवास' होते हुए, महाकौञ्चपुरके एक गोकुल नामके स्थानमें ससंघ कायोत्सर्ग-मुद्रामें बैठ गये।
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